मोदी सरकार ने किया साफ मना, पैसा गायब होने पर नहीं कर सकते मदद
नई दिल्ली। दिन ब दिन बढ़ते घोटालों की वजह से बैंक खस्ताहाल हैं। वहीं केंद्र के नोट बैन के फैसले पर गौर किया जाए तो इसकी वजह से भी बैंको की स्थिति काफी खराब हुई। अब ताजा मामले में बैंकों की बिगड़ी हुई हालत को सुधारने के लिए केंद्र सरकार आखिरी फंडिंग के तौर पर 20 लाख करोड़ की रकम मुहैया करा रही है। बता दें सरकार ने फैला किया है कि इसके बाद अब किसी भी स्थिती में बैंकों को बेलआउट पैकेज नहीं दिया जाएगा।
दलित दंगल के बीच शाह ने खेला मास्टर स्ट्रोक, कोर्ट से नहीं बनी बात तो निकाला ये नया तरीका
इसके बाद नुकसान की सूरत में बैंको को खुद ही अपने लिए फंडिंग करनी होगी। नहीं तो उनके पास दूसरा विकल्प अन्य बैंको के साथ विलय करने का है।
इसके अलावा बीते दिनों हुए 13 हजार करोड़ के पीएनबी घोटाले से भी सरकार और वित्त मंत्रालय चौकन्ना हुए हैं।
इस तरह की स्थिति से बचने के लिए सरकार ने बैंकों से 2.5 अरब रुपये से अधिक बांटे गए लोन की निगरानी करने को कहा है। साथ ही साफ निर्देश दिया है कि बैंक अपने बोर्ड की हर तिमाही मीटिंग में रिपोर्ट पेश करें।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार को झटका, एससी-एसटी एक्ट के फैसले पर नहीं लगेगी रोक
बता दें भारत एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। देश के कुल 21 सरकारी बैंकों के पास देश के बैंकिंग सेक्टर की दो-तिहाई संपत्ति है। लेकिन दूसरी हकीकत यह भी है कि देश में फंसे कर्जों का 90 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं सरकारी बैंकों का है।
अक्टूबर 2017 में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सरकारी बैंकों को 21 लाख करोड़ रुपये का बेलआउट पैकेज देने का ऐलान किया था ताकि बैंकों को बैड लोन को राइट ऑफ करने में मदद मिल सके।
खबरों के मुताबिक़ सोमवार को जानकारी देते हुए स्टेट बैंकिंग सेक्टर पर नजर रखने वाले एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि अब बुरे हालात में बैंकों को नॉन-कोर ऐसेट्स बेचकर और एक-दूसरे के साथ विलय करके अपने लिए फंड जुटाना होगा।
अधिकारी ने कहा, ‘मेरा संदेह यही है कि अब रीकैपिटलाइजेशन नहीं होना चाहिए। अब तक जो हुआ सो हुआ, अब और नहीं। अब खुद को इस स्थिति से निकालने की जिम्मेदारी आपकी (बैंकों की) है। हम आपको (बैंकों को) आईसीयू (खराब हालत) से निकाल लाए। अगर आप बार-बार आईसीयू में जाते रहे और हम निकालते रहे, यह तो नहीं हो सकता।’
सरकार अब बैंकों का विलय करके उनकी संख्या 21 से घटाकर 12-13 करना चाह रही है। कहा जा रहा है कि यह विलय वित्त वर्ष 2018-19 में हो जाएगा। सरकार के इस फैसले से भले ही कुछ बैंककर्मियों और उपभोक्ताओं में तरह-तरह के सवाल उठ रहे हों, लेकिन सरकार इसे उस मौके के रूप में देख रही है, जिसके जरिए मजबूत और प्रतिस्पर्धी बैंक अस्तित्व में आ सकेंगे।
अधिकारी ने आगे कहा कि या तो बैंक आपस में विलय कर लें या फिर अपनी स्थिति सुधारने के लिए खुद कमर कस लें। अगर वे फिर से कर्ज में आए तो उन्हें अपनी फंडिंग खुद करनी होगी।
देखें वीडियो :-