#अलविदा 2017: आवाज़ें बंद, सच्चाई की खोज में कई पत्रकारों की जान लेकर गया ये साल!
नई दिल्ली। आज हम पुराने साल को अलविदा बोल, नए साल में प्रवेश करने जा रहे हैं। लेकिन इस बीतें साल (2017) में कई ऐसी घटनाएं घटित हुई जिसके कारण पूरे देश को शमर्सार होना पड़ा। अगर 2017 को पत्रकारों की सुरक्षा के नजरिये से देखें तो यह साल बेहद दु:खद रहा है।
दरअसल, साल 2017 में कई ऐसे हत्याएं और अपराध हुए जिन्होंने देश को हिलाकर रख दिया। साल की शुरुआत बैंगुलुरू में महिला के साथ छेड़छाड़ की सीसीटीवी फुटेज वायरल होने से हुई।
और खत्म होते होते राजसमंद में शंभुलाल रैगर के अपराध ने लोगों को स्तब्ध कर दिया। इस साल प्रेस पर भी कई हमले हुए। इसके चलते बहुत से मीडियाकर्मियों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी।
आईएफजे ने भी जताई पत्रकारों की हत्याओं पर चिंता
वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या ने पूरे देश को हिला कर रख दिया और यह मामला सुर्खियों में छाया रहा। इस मामले ने भारत में पत्रकारों की सुरक्षा को एक बड़े मुद्दे के रूप में रेखांकित किया। मुद्दे की गंभीरता को इसी बात से समझा जा सकता है कि साल 2017 में मीडियाकर्मियों पर हमलों की विभिन्न घटनाओं में नौ पत्रकार जान गवां बैठे।
पत्रकारों की हत्याओं से चिंतित केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को परामर्श जारी किया और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के निर्देश दिए। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स (आईएफजे) ने भी भारत में पत्रकारों की हत्याओं पर चिंता जताई और ऐसी घटनाओं की निंदा की।
बीतें साल हुई 9 पत्रकारों की हत्या
2017 में किसी पत्रकार की हत्या की पहली घटना 15 मई को तब हुई जब इंदौर में स्थानीय अखबार ‘अग्निबाण’ के 45 वर्षीय पत्रकार श्याम शर्मा की हत्या कर दी गई। मोटरसाइिकल सवार दो हमलावरों ने उनकी कार को रुकवाकर उनका गला रेत दिया।
इसके 15 दिन बाद 31 मई को हिन्दी दैनिक ‘नई दुनिया’ के पत्रकार कमलेश जैन की मध्य प्रदेश के पिपलिया मंडी क्षेत्र में गोली मारकर हत्या कर दी गई।
पांच सितंबर को बेंगलूरू में 55 वर्षीय पत्रकार गौरी लंकेश की गोली मारकर हत्या कर दी गई। वह कन्नड़ भाषा के साप्ताहिक पत्र ‘लंकेश पत्रिका’ की संपादक थीं। हमलावरों ने उनके घर के पास उन्हें कई गोलियां मारीं।
अभी इस घटना को 15 दिन ही हुए थे कि एक और पत्रकार की हत्या हो गई। 20 सितंबर को त्रिपुरा में स्थानीय टेलीविजन पत्रकार शांतनु भौमिक की तब हत्या कर दी गई जब वह इंडीजीनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) तथा त्रिपुरा राजाएर उपजाति गणमुक्ति परिषद (टीआरयूजीपी) के बीच संघर्ष की कवरेज कर रहे थे।
भौमिक की हत्या के महज तीन दिन बाद 23 सितंबर को पंजाब के मोहाली में 64 वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार केजे सिंह और उनकी 94 वर्षीय मां की हत्या कर दी गई। सिंह के पेट में चाकू से कई वार किए गए थे और उनका गला रेत दिया गया था। उनकी मां की हत्या गला घोंटकर की गई थी।
इसके बाद 21 अक्तूबर को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में दैनिक जागरण के पत्रकार राजेश मिश्र की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हमले में उनके भाई बुरी तरह घायल हुए थे। हमलावरों ने उन पर कई गोलियां चलाई थीं।
बीते 20 नवंबर को बंगाली अखबार स्यांदन पत्रिका के पत्रकार सुदीप दत्ता भौमिक की अगरतला से 20 किलोमीटर दूर आरके नगर में 2-त्रिपुरा राइफल्स के एक कांस्टेबल ने गोली मारकर हत्या कर दी।
इसके 10 दिन बाद 30 नवंबर को उत्तर प्रदेश में कानपुर के बिल्हौर क्षेत्र में हिंदुस्तान अखबार से जुड़े पत्रकार नवीन गुप्ता की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
गुजरते साल के साथ हरियाणा में भी एक पत्रकार की हत्या का मामला सामने आया। कई अखबारों के साथ अंशकालिक पत्रकार के रूप में जुड़े रहे राजेश श्योराण का क्षत-विक्षत शव 21 दिसंबर की सुबह चरखी दादरी जिले में कलियाणा रोड के किनारे पड़ा मिला।