केंद्र की ये ‘रिपोर्ट’ आते ही भड़की ममता, निकाली जमकर भड़ास, कहा- किसानों के लिए नहीं…

नई दिल्ली मोदी सरकार द्वारा बीते तीन सालों में करीब 2.41 लाख करोड़ के कर्ज को एनपीए यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स में डालने की बात सामने आने से पश्चिम बंगाल की मुख्मंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी भड़क गई हैं। उन्होंने मोदी सरकार के इस कदम पर हैरानगी जताते हुए कहा- बहुत अफ़सोस की बात है कि केंद्र द्वारा यह कदम ऐसे समय में उठाया गया, जब कर्ज के बोझ तले दबे किसान आत्महत्या करने को मजबूर है। फिर भी उनके हित में कोई भी कदम नहीं उठाया गया। वहीं सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा दिए गए कर्ज का खुलासा करने से भी इनकार कर रही है।

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मोदी सरकार

बता दें तकरीबन ढाई लाख करोड़ रुपये की कर्ज माफी से भड़की ममता बनर्जी ने फेसबुक पर पोस्ट लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर की।

खबरों के मुताबिक़ केंद्रीय मंत्री ने आरबीआई का हवाला देते हुए सदन को बताया कि कर्जदारों के बारे में ऐसा कोई ब्यौरा उपलब्ध नहीं है, जिसका खुलासा किया जा सके। उन्होंने स्पष्ट किया कि आरबीआई अधिनियम के तहत कर्जदारों के बारे में बैंकों द्वारा दी गई जानकारी गोपनीय है।

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बता दें कि पिछले कुछ वर्षों में सरकारी बैंकों पर एनपीए का बोझ कम होने के बजाय लगातार बढ़ता ही जा रहा है।

आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, देश के 21 सरकारी बैँक एनपीए की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। 31 दिसंबर तक 8.26 लाख करोड़ रुपये के कर्ज को एनपीए घोषित किया जा चुका था।

वहीं मोदी सरकार ने नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) को लेकर महत्वपूर्ण जानकारी दी है। वित्त राज्यमंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने लिखित जवाब में संसद को बताया कि केंद्र सरकार ने पिछले तीन वर्षों में (अप्रैल, 2014 से सितंबर, 2017 के बीच ) 2.41 लाख करोड़ के कर्ज को ठंडे बस्ते में डाल दिया है।

केंद्रीय मंत्री ने राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि एनपीए या जोखिम वाले कर्ज को ठंडे बस्ते में डालने का कदम नियमित प्रक्रिया का हिस्सा है। बैंक अपने बैलेंस शीट को दुरुस्त करने के लिए अक्सर ऐसा करती रहती है।

शिव प्रताप शुक्ला ने कहा, ‘ग्लोबल ऑपरेशन पर आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, सरकारी बैंकों ने वित्त वर्ष 2014 से 2017 (सितंबर) के बीच कुल 2,41,911 करोड़ रुपये के कर्ज को ठंडे बस्ते में डाला।

निर्धारित कानूनी प्रावधानों के तहत वसूली की प्रक्रिया भी चल रही है, ऐसे में कर्ज को ठंडे बस्ते में डालने से कर्ज लेने वालों को कोई फायदा नहीं होगा।’

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