ऐसे ही भगवान विष्णु नहीं बने तारणहार, इन गुरुओं की शिक्षा का था योगदान
आज टीचर डे है और इस दिन सभी अपने-अपने गुरुओं का शुक्रिया अदा करते हैं. वैसे तो शिक्षक के लिए कोई परिभाषा नहीं बनी, न ही बन सकती है. शब्द कितने भी हों पर इन तीन अक्षरों (शिक्षक) को उनमें पिरोया नहीं जा सकता. शिक्षक सिर्फ हमें पढ़ाने, समझाने तक ही सीमित नहीं होता. वो एक ऐसी डोर है, जिसे पकड़कर हम अपनी जिंदगी के हर मुकाम को हासिल करते हैं. ऐसा सिर्फ हम इंसान ही नहीं भगवान भी करते आए हैं, जिनमें भगवान विष्णु का नाम शिष्य के तौर पर सबसे पहले आता है. विष्णु जी ने भी कई अवतारों में अपने गुरुओं से शिक्षा ग्रहण की है. लेकिन विष्णु जी के एक अवतार में उन्होंने अपने गुरु से युद्ध भी किया है.
गुरु वशिष्ट
श्री राम जी ने वेद-वेदांगों की शिक्षा गुरु वशिष्ट से ग्रहण की थी. श्रीराम आज्ञाकारी शिष्य थे. श्री राम के साथ भाई भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न ने भी शिक्षा ग्रहण की थी. वहीं गुरु विश्वामित्र श्रीराम के दूसरे गुरु हैं. ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने भगवान श्रीराम को कई विद्याओं से परिचित कराया. विश्वामित्र ने श्रीराम और लक्ष्मण को कई अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान दिया था. ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने अपने द्वारा तैयार किए गए दिव्यास्त्रों भी दिए थे.
मुनि संदीपन
श्रीकृष्ण ने अपने भाई बलराम और दोस्त सुदामा के साथ संदीपनी मुनि से शिक्षा ली थी. इनके आश्रम में न्याय, राजनीति शास्त्र, धर्म पालन और अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दी जाती थी. आश्रम नियमावली के अनुसार शिष्यों को ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करना होता था.
शास्त्रों के मुताबिक, आश्रम श्रीकृष्ण संदीपनी मुनि के आश्रम में करीब 64 दिनों में शिक्षा ग्रहण सम्पूर्ण शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया था. श्रीकृष्ण ने 20 दिनों में जीवन से जुड़ी दूसरी महत्वपूर्ण चीजें सीखी और गुरु की सेवा की. इस दौरान उन्होंने 18 दिनों में 18 पुराण, 4 दिनों में चारों वेदों का ज्ञान लिया. इसके बाद 6 दिनों में 6 शास्त्र, 16 दिनों में 16 कलाएं सीखीं.
भगवान शिव
जैसा कि सभी को पता है परशुराम विष्णु जी के अवतार हैं और इनके गुरु भगवान शिव थे. परशुराम शिव जी के अच्छे शिष्यों में से एक माने जाते हैं. एक बार जब परशुराम शिव जी से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, उस समय भोले ने परशुराम से एक काम करने को कहा. वह कार्य नीति के विरुद्ध था. ऐसे में परशुराम गुरु आदेश मानकर सोच में पड़ गए लेकिन बाद में उन्होंने मना कर दिया. इसके बाद महादेव ने उन पर दबाव बनाया तो परशुराम युद्ध करने पर उतर आए. परशुराम के बाणों को भोलेनाथ ने त्रिशूल से काट दिया. इस दौरान जब परशुराम ने भोले पर फरसे से प्रहार किया तो उन्होंने अपने अस्त्र का मान रखते हुए उसे अपने ऊपर आने दिया. फरसे से उनके मस्तिष्क पर चोट लगी. इसके बाद शिव ने परशुराम प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि अन्याय अधर्म से लड़ना ही सबसे बड़ा धर्म है.