देवभूमि उत्तराखंड में मौजूद हैं पांच केदार, अलग-अलग है धार्मिक महत्व

देवभूमि उत्तराखंड में अनेकों मंदिर हैं, जिनके दर्शन मात्र से ही सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. यह राज्य आस्था का बड़ा केन्द्र है. इस राज्य में गंगोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ ये कुछ ऐसे पौराणिक स्थल हैं. पूरे साल टूरिस्टों और भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है. केदारनाथ के अलावा भी 4 और केदार उत्तराखंड में मौजूद हैं, जिनका धार्मिक महत्व अलग है. आइए जानते इन पंच केदारों के बारे में.

केदारनाथ

केदारनाथ

केदारनाथ का सर्वश्रेष्ठ स्थान है. भगवान शिव का यह स्थान राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में है. हिमालय की गोद में बसा केदारनाथ बारह ज्योतिर्लिंगों में सम्मिलित है. जलवायु की वजह से मंदिर के द्वार अप्रैल से नवंबर के मध्य ही खोले जाते हैं. इस मंदिर का निर्माण कुरू वंश के राजा जनमेजय ने करवाया था. यहां शिवलिंग स्वयं प्रकट हुए हैं. 2013 में आई केदारनाथ आपदा के दौरान मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ था.

मध्यमेश्वर

केदारनाथ के बाद मध्यमेश्वर का नाम आता है, जो ऊषीमठ से लगभग 18 मील की दूरी पर स्थित है. इस मंदिर को मदनमहेश्वर कहा जाता है. इस स्थान पर भगवान शिव की नाभि शिवलिंग के रूप में स्थित है. पौराणिक किवदंतियों के अनुसार, भोलेनाथ ने अपनी मधुचंत्र रात्रि इसी स्थान पर मनाई थी. यहां के जल के स्पर्श मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.

तुंगनाथ

पंच केदार में तीसरा माना जाता हैं. तुंगनाथ में भगवान शिव की भुजा एक शिला के रूप में विराजमान है. पौराणिक किवदंतियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए करवाया था. यहां मार्च से अक्टूबर के बीच किसी भी समय आ सकते हैं. चन्द्रशिला शिखर और गुप्तकाशी यहां स्थित अन्य पौराणिक दर्शनीय स्थल हैं.

रूद्रनाथ

रूद्रनाथ का पंच केदार में चौथा स्थान है. इस दिव्य स्थान पर महिष रूपधारी भगवान शिव का मुख उपस्थित है. तुंगनाथ से रूद्रनाथ पर्वत दिखाई देता है पर यहां का पहाड़ी रास्ता बहुत ही ज्यादा कठीन है. यहां आने का सही समय गर्मी और बसंत है.

कल्पेश्वर

कल्पेश्वर का पंच केदार में पांचवा स्थान है. इस स्थान पर महिष रूपधारी भगवान शिव की जटाओं का पूजा होती है. भगवान शिव का यह स्थान अलकनंदा पुल से करीब 6 मील की दूरी पर स्थित है. मंदिर समुद्र तल से लगभग 2134 की ऊंचाई पर स्थित है. यहां साल के किसी भी महीने आ सकते हैं.

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