चुनाव से पहले सरकार का बड़ा दांव, लिंगायत को दी अलग धर्म की मान्यता

बेंगलुरू। कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले राज्य मंत्रिमंडल ने सोमवार को हिंदू धर्म के लिंगायत पंथ को एक अलग धर्म के रूप में मान्यता देने पर सहमति जताई। राज्य के कानून मंत्री टी.बी. जयचंद्र ने यह जानकारी दी।

लिंगायत

जयचंद्र ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद पत्रकारों से कहा, “कर्नाटक राज्य अल्पसंख्यक आयोग की अनुशंसा पर, राज्य मंत्रिमंडल ने सर्वसम्मति से लिंगायत और वीरशैव लिंगायत को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने का फैसला किया है।”

शिव की पूजा करने वाले लिंगायत और वीरशैव लिंगायत दक्षिण भारत में सबसे बड़ा समुदाय हैं, जिनकी आबादी यहां कुल 17 प्रतिशत है। अप्रैल-मई में होने वाले चुनाव में इनके वोट नतीजों में फर्क पैदा कर सकते हैं।

मंत्री ने कहा, “मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अध्यक्षता में राज्य मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अंतर्गत आयोग की सिफारिशों को मान्यता देने और उसे अधिसूचित करने के लिए केंद्र सरकार के पास भेजने का फैसला किया है।”

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जयचंद्र ने कहा, “आयोग ने लिंगायत को अल्पसंख्यक का दर्जा इस दृष्टिकोण से दिया है कि राज्य में अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकार को हानि पहुंचे बिना ही लिंगायत और वीरशैव लिंगायत को समुचित पहचान दी जाए।”

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आयोग के अंतर्गत कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच.एन. नागमोहन दास की अध्यक्षता वाली एक अन्य समिति ने भी लिंगायत को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने की अनुशंसा की है।

बता दें कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के लोगों की संख्या राज्य की कुल आबादी की 17 से 18 फीसदी है।

लिंगायतों का राजनीतिक रुझान

1980 के दशक में लिंगायतों ने राज्य के नेता रामकृष्ण हेगड़े पर भरोसा किया था। बाद में लिंगायत कांग्रेस के वीरेंद्र पाटिल के भी साथ गए। 1989 में कांग्रेस की सरकार में पाटिल सीएम चुने गए, लेकिन राजीव गांधी ने पाटिल को एयरपोर्ट पर ही सीएम पद से हटा दिया था। इसके बाद लिंगायत समुदाय ने कांग्रेस से दूरी बना ली।

इसके बाद लिंगायत फिर से हेगड़े का समर्थन करने लगे। इसके बाद लिंगायतों ने बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा को अपना नेता चुना। जब बीजेपी ने येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाया तो इस समुदाय ने बीजेपी से मुंह मोड़ लिया था।

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