Movie Review : ‘कड़वी हवा’ नहीं हकीकत है, अभी संभल जाओ

मुंबई। नील माधव पांडा अपनी अलग ट्रैक की फिल्‍मों के लिए मशहूर हैं। आई एम कलाम, कौन कितने पानी में है, जलपरी और बबलू हैप्‍पी है जैसी फिल्मों से उन्‍होंने कई बार संगीन मुद्दों को सामने रखा है। इस बार उन्‍होंने अपनी फिल्म से ऐसा मुद्दा उठाया है जिसे लेकर देश ही दुनिया भी चिंति‍त है। कड़वी हवा ग्‍लोबल वॉर्मिंग और क्‍लाइमेट चेंट जैसे बड़े मुद्दों लोगों को जागरुक करने का काम करती है।

100 मिनट की यह फिल्‍म तब पर्दे पर आई है जब हार कोई क्‍लाईमेट चेंज और स्‍मॉग की परेशानी से गुजर रहा है। फिल्‍म की कहानी दो अलग हालातों से का शिकार हुए अंधे किसान दीउ (संजय मिश्रा) और लोन रिकवरी ऑफिसर गुन्‍नू बाबू (रणवीर शोरे) के इर्द गिर्द घूमती है।

कहानी में एक ओर जहां बुदेलखंड में रहने वाले दीउ के गांव के किसान सूखा पड़ने की वजह से आत्‍महत्‍या कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर ओडि़सा के तटिया स्थल पर रह रहा गुन्‍नू बाबू का परिवार बाढ़ से पीडि़त है। बाढ़ की वजह से गुन्‍नू बाबू अपने पिता को खो चुके हैं।

गांव में गुन्‍नू बाबू जब भी आते हैं तो लोग उन्‍हें यमदूत समझमते है। एक जगह दीउ भे उनसे कहते हैं कि ‘तुम जब भी यहां आते हो 3-4 लोगों की जिंदगी साथ लेकर जाते हो।’ गुन्‍नू बाबू गांव के किसान से लोन रिकवरी करने आए हैं। इस बार वह लोन रिकवरी के पैसों से अपने परिवार को किसी सुरक्षित स्‍थान पर ले जाना चाहते हैं।

उनके लिए ऐसे लोगों से पैसे निकलवाना बेहद मुश्‍किल है जो खुद परस्‍थितियों का शिकार हैं। इन सबके के बीच किस दोनों अलग अलग किरदारों के हालात में सुधार आता है या वह बद से बदतर हो जाते हैं, ये जानने के लिए आपको सिनेमाघर जाना पड़ेगा।

कड़वी हवा सिर्फ एक फिल्म नहीं है। इस फिल्‍म से नील माधव पांडा का लक्ष्‍य पैसे कमाना नही बल्कि लोगों को जागरुक करना है। वह उन लोगों को जागरुक करना चाहते है जिन्हें सबकुछ पता तो है पर फिर भी वही लोग हलातों को बिगाड़ने के लिए जिम्‍मेदार हैं।

फिल्म में संजय मिश्रा और रणवीर शोरे किरदार निभाया नहीं बल्कि उनको जिया है। उन्‍हें देखकर आप ये नहीं कह सकते कि वो एक्‍टिंग कर रहे हैं। सिर्फ ये दो ही नहीं बाकी किरदारों ने भी उम्‍दा एक्‍टिंग की है। किसी की भी परफॉर्मेंस को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। फिल्म दर्शकों को हालातों को जीने का मौका देती है। दोनों किरदारों की अलग अलग परस्थि‍ति का दर्द देख अपकी आखें खुद बखुद छलक उठेंगी।

फिल्‍म का एक मात्र गाना ‘मैं बंजर’ ओर गुलजार द्वारा लिखी गई कविता ‘मौसम बेघर होने लगे हैं’ एक ऐसे डरावने सच से रूबरू कराती है जिससे हमारा ही अस्‍तित्‍व खत्‍म हो रहा है। फिल्‍म के कई डायलॉग अपको झकझोर कर रख देते हैं। हर एक डालॉग रोएं खडे कर देते हैं। जैसे ‘मौसम साल में बस दो होते हैं’, ‘हमारे यहां जब बच्चा जनमत है तो हाथों में तकदीर की जगह कर्जे की रकम लिखकर आत है’ और भी कई। ये डायलॉग आपको खुद में मजबूर और असहाय महसूस कराते हैं।

स्‍टार – 4

कड़वी हवा नील माधव पांडा का सराहनीय प्रयास है। एंटरटेनमेंट और ग्‍लैमर फिल्‍मों से हटकर फिल्‍म कड़वी हवा को देखने सिनेमाघर जरूर जाएं।

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