जीविका के लिए रास नहीं आई नौकरी, पुश्तैनी धंधा को दिया महत्व

दिलीप कुमार

भागते दौड़ते इस दौर में कौन शिक्षित होने के बाद कौन खानदानी पेशे या परंपरागत में पेशे में हाथ बटाने का रिस्क ले सकता है। किसी को इस तरह का पेशा रास नहीं आता । इस तरह के पेशे रास न आने के कई पहलू हो सकता है।

लिहाजा इस दौर में देश के ज्यादातर युवा पढ़ने लिखने के बाद नौकरी करना ही पसंद कर रहे हैं। बहरहाल आज भी देश में ऐसे बहुत सारे नौजवान हैं, जो बेहतरीन पढ़ाई लिखाई करने के बाद भी वो अपने पुश्तैनी काम या फिर परंपरागत काम को करने में रूचि ले रहे हैं।

आपको बता दें कि ऐसा ही एक उदाहरण यूपी के मुरादाबाद के ताड़ीखाना से सामने आया है। ताड़ीखाना निवासी सुनील बताते हैं कि 19 के दशक से उनके घर में चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाने का काम हो रहा है। इस काम में पहले उनके दादा, फिर पिता और अब वह खुद इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। अब उनका पूरा परिवार इसी काम में ढल गया है। हर कोई दीये बनाने से लेकर घड़े बना रहा है।

उन्होंने अपने शैक्षणिक योग्यता के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि मै बायो से बीएससी किया फिर उसके बाद 20 हाजर रूपये प्रति माह पर नौकरी की, लेकिन बाद में विचार में आया कि क्यों अपने पुश्तैनी पेशे को आगे बढ़ाया जाए। फिर क्या था मै अपने परिवार के साथ पुश्तैनी पेशे में हाथ बटाना शुरू किया, ताकि अपनी परंपराओं से जुड़े रहें।

इन दिनो लोग बढ़ती गर्मी में प्यास बुझाने के लिए घड़े की खरीदारी कर रहे हैं। इन घड़ों की बिक्री का सीजन अप्रैल से जुलाई तक रहता है। सीजन में हर माह 25-30 हजार रूपये कमा लेते हैं। प्रतिदिन 20-22 घड़े बिक जाते हैं। हमारे पास एक 100-250 रूपये तक का घड़ा है।

गौरतलब है कि बदलते वक्त के साथ परंपरा लुप्त होती जा रही है। अब लोग भी अपने पुश्तैनी काम से लेकर परंपराओं से दूरी बना रहे हैं, क्योंकि अच्छी शिक्षा प्राप्त कर नौकरिया पा रहे हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी है, जो अपने पुश्तैनी पेशे को आगे बढ़ा रहे हैं, ताकि अपनी परंपराओं से जुड़े रहे।

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