JNU में मचा हिंदी विषय और भाषा को लेकर विवाद ! ये है पूरा बवाल..

जवाहर लाल नेहरू विश्व‍विद्यालय (JNU) में 28 जून को Academic Council (एसी) की 151वीं बैठक होने जा रही है. जेएनयू स्टूडेंट यूनियन का कहना है कि बैठक में हिंदी को लेकर फैसला होने जा रहा है, जो स्टूडेंट के हित में नहीं है. अब JNU में हिंदी भाषा को लेकर क्यों उठा विवाद,

ये है पूरा मामला-

जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष एन साईं बालाजी का कहना है कि जेएनयू प्रशासन 28 जून को होने जा रही एकेडमिक काउंसिल की बैठक में स्नातक स्तर के प्रोग्राम में हिंदी को अनिवार्य करने जा रही है.

उन्होंने आरोप लगाया कि इसके पीछे जेएनयू प्रशासन सरकार और राष्ट्रीय स्वयं सेवक का छिपा हुआ एजेंडा हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान लागू करना चाहती है.

उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) द्वारा 2018 में सभी विश्वविद्यालयों को जारी एक आधिकारिक पत्र का हवाला दिया है, जिसमें हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में उल्लिखित किया गया है.

इसके अलावा हिंदी को सभी स्नातक स्तर के कार्यक्रमों में अनिवार्य पाठ्यक्रम के रूप में लागू करने के निर्देश दिए हैं.

 

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JNUSU President ने कहा, देश की कोई एक राष्ट्रीय भाषा नहीं

स्टूडेंट यूनियन का कहना है कि भारत में कोई एक राष्ट्रीय भाषा नहीं है. देश के संविधान की आठवीं अनुसूची देश की विविध और बहुआयामी प्रकृति के अनुसार 22 आधिकारिक भाषाओं को सूचीबद्ध करती है. बालाजी ने जेएनयू कुलपति पर जबरन हिंदी भाषा को थोपने की योजना बनाने का आरोप लगाया है.

बाला जी ने कहा कि आज जब सरकार आम जनता के दबाव में अपनी ड्राफ्ट शिक्षा नीति और 3 भाषा फार्मूले को संशोधित करने पर मजबूर है, ऐसे में जेएनयू कुलपति द्वारा हिंदी को अनिवार्य करना निंदनीय है.

उन्होंने कहा कि हर किसी को अपनी पसंद की भाषा सीखने का अधिकार है. इस देश में कोई भी भाषा किसी अन्य से ऊपर नहीं है. छात्रों को सीखने के लिए विकल्प दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि छात्रों पर भाषा को लेकर किसी भी तरह का दबाव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

उन्होंने कहा कि JNUSU जबरन हिंदी को थोपने का विरोध करता है. साथ ही हम कुलपति से मांग करते हैं कि वो बैठक का एजेंडा 16 ड्रॉप करें जो स्नातक स्तर पर हिंदी को अनिवार्य बनाने की वकालत करता है.

अगर फिर भी जबरन इसे थोपा जाता है तो जेएनयूएस शांतिपूर्वक ढंग से इसे लेकर विरोध करेगा. फिलहाल इस मामले में अभी तक जेएनयू प्रशासन की ओर से कोई भी पक्ष नहीं रखा गया है.

 

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