सामाजिक कुरीतियों को दरकिनार कर महिला ने कायम की मिसाल, जानें पूरा मामला

रिपोर्ट- कुलदीप अवस्थी

झांसी। बेटा नहीं होने पर बेटियां या उनके बेटों द्वारा अंतिम संस्कार किया जाता रहा है। लेकिन पत्नियां बहुत कम ही मुखग्नि देती हैं। सनातन धर्म में कहा जाता है कि पत्नियां श्मशान नहीं जा सकतीं। एक महिला ने इन सभी कुरीतियां को किनारा करते हुए अपने पति का अंतिम संस्कार किया। उसने बिलखते हुए अपने जीवनसाथी को मुखांग्नि दी।

हैरान कर देने बाला काम

दरअसल झांसी के सैंयर दरवाजे के पास रहने वाले रमेश चंद चैरसिया और ममता चैरसिया दंपति के बेटा नहीं था। वह निजी व्यवसाय करते थे। रमेश चंद चैरसिया को 7 जून को अस्थमा का अटैक आया था। उसे एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसे कुछ दिन आराम मिला मगर आज तड़के उन्हें फिर अटैक आया और उनका देहांत हो गया।

चैरसिया दंपति का एक बेटा अल्प आयु में चल बसा था। उनकी एक बेटी भी है। मुखाग्नि देने के लिए बेटी को मना किया गया। ममता ने बेटी को दुखदायी खबर दी, लेकिन बेटी के आने इंतजार किये बिना ही उसने अंतिम क्रिया से संबंधित सभी रस्मों की अदायगी कर दी। उसने रोते-सुबकियां लेते हुए पति को अंतिम विदायी दे दी।

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पति की चिता की परिक्रमा करती हुई ममता विचलित बहुत थी। लेकिन उसने साहस दिखाते हुए संपूर्ण क्रियाओं का बखूबी निर्वहन किया। ममता ने बताया कि डाक्टरों ने जवाब दे दिया था कि वह बचेंगे नहीं तो पहले ही फैसला ले लिया था कि वह पति का अंत तक साथ देगी।

श्मशान यात्रा में शामिल अन्य सम्प्रदाय के व्यक्ति ने कहाजहीर अब्बासी ने बताया कि समाज में परंपरा रही है कि पुत्र ही मुखाग्निी देगा। पत्नी इस पुरानी परंपरा का अंत कर अच्छा कार्य किया है। उसने पूरा अपना धर्म निभाया है इससे समाज में अच्छा संदेश जायेगा।

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