अगर ऐसे किया बप्पा का स्वागत, तो हो जायेंगे मालामाल, ‘गणेश चतुर्थी’ पर विशेष

नई दिल्ली| गणेेश चतुर्थी से शुरू होकर अनन्त चतुर्दशी (अनंत चौदस) तक मनाए जाने वाले इस पर्व की धूम 10 दिन तक रहेगी। मान्यता है कि इन दस दिनों के दौरान यदि श्रद्धा एवं विधि-विधान के साथ गणेेश जी की पूजा किया जाए तो जीवन के समस्त बाधाओं का अंत कर विघ्नहर्ता अपने भक्तों पर सौभाग्य, समृद्धि एवं सुखों की बारिश करते हैं।

अगर ऐसे किया बप्पा का स्वागत, तो हो जायेंगे मालामाल, गणेश चतुर्थी पर विशेष

दस दिन तक चलने वाला यह त्योहार का एक ऐसा अद्भुत प्रमाण है जिसमें शिव-पार्वती नंदन श्री गणोश की प्रतिमा को घरों, मंदिरों अथवा पंडालों में साज-श्रृंगार के साथ चतुर्थी को स्थापित किया जाता है।

कई श्रद्धालु 3 दिन या 5 दिन के लिए गणेेश जी की स्थापना करते हैं। वे अपनी श्रद्धा और भक्ति के अनुसार इन दिनों का निर्धारण करते हैं, लेकिन 11 दिनों का यह पर्व उत्तम माना गया है। दस दिनों तक गणेेश प्रतिमा का नित्य विधिपूर्वक पूजन किया जाता है और ग्यारहवें दिन इस प्रतिमा का बड़े धूम-धाम से विसर्जन होगा।

भगवान गणेश की आराधना के लिए बुधवार का दिन भी विशेष फलदायी होता है। हिंदू संस्कृति में भगवान गणेश का सर्वोपरि स्थान है। प्रत्येक मंगल कार्य को शुरू करने से पहले भगवान गणेश का आह्वान जरूरी है।

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श्री गणेेश स्थापना के लिए सबसे पहला मुहूर्त 13 सितंबर वीरवार को सुबह 6 से 7.30 बजे तक है। इसके बाद 10.30 बजे दूसरा मुहूर्त शुरू होगा जो कि दोपहर 12 बजे तक रहेगा। इसके अलावा दोपहर 12 से 3 बजे तक का मुहूर्त भी श्रेष्ठ रहेगा। इसके बाद शाम 4.30 बजे से चौथा मुहूर्त प्रारंभ होगा जो 6 बजे तक लगातार रहेगा। शाम 6 से रात 9 बजे तक स्थापना का मुहूर्त रहेगा।

ऐसे करें बप्पा का पूजन-

गणेश के दौरान शुद्ध आसन पर बैठने से पहले सभी पूजन सामग्री को एकत्रित कर लें। पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि के साथ पूजा शुरू करें। भगवान गणेश को तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए। भगवान गणेश भगवान को लड्डू बहुत पसंद हैं। उन्हें देशी घी से बने लडुडुओं का प्रसाद अर्पित करें। श्री गणेश के दिव्य मंत्र ॐ श्री गं गणपतये नम: का 108 बार जाप करें।

श्री गणेश के अलावा भगवन शिव व गौरी, नन्दी, कार्तिकेय सहित सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा करें। शास्त्रानुसार श्री गणेश की पार्थिव प्रतिमा बनाकर उसे प्राण प्रति‍ष्ठित कर पूजा-अर्चन के बाद विसर्जित करने कि परम्परा है। जिसे पूजा खत्म होने के बाद उत्साहपूर्वक विसर्जित करना चाहिए।

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