गुरुपूर्णिमा के दिन पड़ेगा सदी का सबसे लम्बा चन्द्रग्रहण, कैसे पायें लाभ

ग्रहण को शास्त्रों में हमेशा से ही एक महत्वपूर्ण घटना बताया गया है। ये जरूरी नहीं की ग्रहण हमेशा एक जैसा ही फल दे। आप अपने प्रयासों से इसके प्रभावों को अपने लिए हितकारी बना सकते हैं। अब हम बात कर रहे हैं चन्द्रग्रहण की। इस सदी का सबसे लंबा चंद्र ग्रहण इस वर्ष की गुरु पूर्णिमा यानि 27 जुलाई की देर रात को घटित हो रहा है।

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ग्रहण का स्पर्श काल या शुरुआत  27 जुलाई को रात 11.54 पर होगा। इसका समापन 28 जुलाई की सुबह 03.54 पर है। यह ग्रहण उत्तराषाढ़ा में आरंभ होकर श्रवण नक्षत्र में समाप्त होगा। इस दौरान प्रीति योग और बालव करण होगा।

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आइए जानते हैं चंद्र ग्रहण के वक्‍त क्‍या करें और कैसे ये चंद्रग्रहण लाभ पहुंचाएगा-

क्या करें –

1. ग्रहण के समय शिवलिंग के सामने बैठकर ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करें जब तक कि ग्रहण समाप्त न हो जाये।

2. ग्रहण से पूर्व हो सके तो गरीबों , बच्चों और जानवरों को भोजन का दान करें। हो सके तो गाय को हरा चारा खिलाएं।

3. ग्रहण के समय गुरुमंत्र का जाप करें तो अध्यात्मिक क्षेत्र में प्रगति करेंगे।

4. ग्रहण के बाद स्नान करके भगवान शिव और पार्वती की पूजा करें।

5. बिल्ली को मलाई वाला दूध पिलायें जिससे आप राहू के प्रकोप से भी बच पायेंगे।

क्या न करें –

1. चंद्रग्रहण  के समय कुछ भी खाएं पियें नहीं।

2. गर्भवती स्त्रियों को बाहर नहीं निकलना चाहिए।

3. कोई नया कार्य नहीं करना चाहिए।

4. वाहन का प्रयोग न करें।

भगवान के ध्यान और पूजा से मिलेगा लाभ- आपको बताते चलें कि “सूर्य और चंद्रमा के बीच जब पृथ्वी एक सीधी रेखा में आ जाती है तो यह ज्यामितीय स्थिति चन्द्रग्रहण कहलाती है।” अतएव चंद्रग्रहण सिर्फ पूर्णिमा को ही घटित हो सकता है। ग्रहण का प्रकार एवं अवधि सूर्य और धरती के मध्य चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर होता है।

ग्रहण का शाब्दिक अर्थ है, ग्राह्य, अंगीकार, स्वीकार, धारण या प्राप्त करना। लिहाजा आध्यात्मिक मान्यताएं ग्रहण काल में ब्रह्माण्डीय ऊर्जा को अंगीकार करने के लिए जप, तप, उपासना, साधना, ध्यान और भजन का निर्देश देती हैं।

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मोक्ष पाने के लिए यह रात है बेहद कारगर – जिनकी कुंडली में पितृदोष या ग्रहण योग है उन्हें संबंधित ग्रहों की ग्रहण की रात उपासना से लाभ मिलेगा। सूर्य और चंद्रमा के साथ यदि राहु या केतु बैठे हों तो यह युति ग्रहण योग कहलाती है। यह स्थिति जीवन में लम्बे समय तक संघर्ष को जन्म देती है।

इसके अतिरिक्त शनि पर सूर्य की दृष्टि भी पितृ दोष का निर्माण करती है। श्रवण नक्षत्र में पड़ने वाला ग्रहण में माता-पिता के कल्याण के लिए की गयी साधना बेहद प्रभावी सिद्ध होती है। श्रवण नक्षत्र के ग्रहण में आरोग्य, विद्या और आकर्षण की उपासना शीघ्र फल प्रदान करती है।

दान का होता है विशेष महत्व- ग्रहण के बाद दान की परंपरा बहुत पुरानी है। शास्त्रों में भी ग्रहण के बाद दान को आवश्यक माना गया है। इसमें आटा, गेहूँ, गुड़, कपड़े, रसीले फल आदि दान देने के लिए उत्तम माने गए हैं।

संपत्ति विवाद से मुक्ति के लिए तिल के मिष्ठान, मान-सम्मान के लिए सूखी मिठाइयां, तात्कालिक आर्थिक कष्ट को दूर करने के लिए रस वाले मीठे पदार्थ, रोग से मुक्ति के लिए घी से भरे चांदी के टुकड़े युक्त कांसे के कटोरे में अपनी छाया देखकर दान, संकट से मुक्ति के लिए ग्रहण के बाद की सुबह को चींटियों और मछलियों को भोजन अर्पित करने से शुभ और आशाजनक परिणाम प्राप्त होता हैं, ऐसा पारंपरिक अवधारणाएं कहती हैं।

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