जानिए क्या है होलिका दहन के मुख्य नियम और पौराणिक कथाएं

होलिका दहन का शास्त्रों के अनुसार नियम: फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए –

पहला, उस दिन ‘भद्रा’ न हो। भद्रा का दूसरा नाम विष्टि करण भी है, जो कि 11 करणों में से एक है। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है। दूसरी बात, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।
यह है होलिका दहन का शुभ और मंगलमयी मुहूर्त
होलिका दहन मुहूर्त :18:20:47 से 20:49:4


होलिका दहन की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा कि उसका पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता, तो वह क्रुद्ध हो उठा और अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुक़सान नहीं पहुंचा सकती। किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत, होलिका जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है। होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।होली की केवल यही नहीं बल्कि और भी कई कहानियां प्रचलित है।

कामदेव को किया था भस्म
होली की एक कहानी कामदेव की भी है। पार्वती शिव से विवाह करना चाहती थीं लेकिन तपस्या में लीन शिव का ध्यान उनकी तरफ गया ही नहीं। ऐसे में प्यार के देवता कामदेव आगे आए और उन्होंने शिव पर पुष्प बाण चला दिया। तपस्या भंग होने से शिव को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी और उनके क्रोध की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए। कामदेव के भस्म हो जाने पर उनकी पत्नी रति रोने लगीं और शिव से कामदेव को जीवित करने की गुहार लगाई। अगले दिन तक शिव का क्रोध शांत हो चुका था, उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित किया। कामदेव के भस्म होने के दिन होलिका जलाई जाती है और उनके जीवित होने की खुशी में रंगों का त्योहार मनाया जाता है।

श्रीकृष्ण और पूतना की कहानी
होली का श्रीकृष्ण से गहरा रिश्ता है। जहां इस त्योहार को राधा-कृष्ण के प्रेम के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है। वहीं,पौराणिक कथा के अनुसार जब कंस को श्रीकृष्ण के गोकुल में होने का पता चला तो उसने पूतना नामक राक्षसी को गोकुल में जन्म लेने वाले हर बच्चे को मारने के लिए भेजा। पूतना स्तनपान के बहाने शिशुओं को विषपान कराना था। लेकिन कृष्ण उसकी सच्चाई को समझ गए। उन्होंने दुग्धपान करते समय ही पूतना का वध कर दिया। कहा जाता है कि तभी से होली पर्व मनाने की मान्यता शुरू हुई।

होलिका दहन का इतिहास
विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है। कुछ लोग मानते हैं कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी ख़ुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी।

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