HC ने घर-घर राशन योजना को किया खारिज, उपराज्यपाल के कर्तव्यों की व्याख्या

आमतौर पर कातार में खड़े होकर लोग सरकारी लाभ लेने में हिचकिचाते जरूर हैं लेकिन इससे इतर होकर तादाद किसी भी योजना का भरूपुर लाभ उठाती है। दरअसल दिल्ली उच्च न्यायालय ने आप सरकार की राजधानी में घर-घर राशन पहुंचाने की मुख्यमंत्री घर-घर राशन योजना को रद्द करते हुए टिप्पणी की।

हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश विपिन संघी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि उचित मूल्य की दुकानों से राशन लेने के लिए कतार में खड़ा होना गरिमा और निजता के अधिकार के खिलाफ नहीं है और अगर एक ही समय में कई लोग एक ही दुकान पर आते हैं तो कतार में लगना स्वाभाविक है।

बता दें कि खंडपीठ ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि लाभार्थियों को अपने आवंटित राशन को लेने के लिए कतार में लगना उनके सम्मान और निजता के अधिकार का उल्लंघन है।

न्यायालय ने सर्वसम्मान को ध्यान में रखते हुए कहा कि यदि कतार में नहीं खड़े होने को नागरिकों का अधिकार मान लिया गया तो इससे समाज में नियम कायदों का कोई अर्थ नहीं रहेगा तथा इससे अन्य लोगों के अधिकारों का भी उल्लंघन होगा।

गौरतलब है कि गैर-सरकारी संगठन बंधु मुक्ति मोर्चा ने अपनी याचिका में घर-घर राशन वितरण योजना को लागू करने की मांग करते हुए तर्क दिया था कि एक व्यक्ति को रासन की दुकान पर एक पंक्ति में खड़े होने की आवश्यकता होती है और कानून के मुताबिक इससे उस व्यक्ति के सम्मान और निजता के अधिकार का उल्लंघन होता है।

उक्त याचिका की सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि घर-घर राशन वितरण योजना को उसके वर्तमान स्वरूप में लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसे उपराज्यपाल ने मंजूरी नहीं दी है। यदि मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रीपरिषद और उपराज्यपाल के बीच मतभेद होता है, तो अंतिम निर्णय राष्ट्रपति के पास होगा और वह निर्णय दोनों पर बाध्यकारी होगा।

उच्च न्यायालय ने राज्यपाल की सीमा को निर्धारित करते हुए कहा कि उपराज्यपाल से सामान्य रूप से उन मामलों के संबंध में अपने मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने की अपेक्षा की जाती है, जिन पर विधानसभा कानून बना सकती है।

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