Gujarat: प्रतिबंध के बाद भी बिक रही शराब, कोर्ट करेगी सुनवाई

गुजरात हाई कोर्ट(Gujarat HighCourt) ने सोमवार मद्य निषेध कानून-1949, जिसके तहत राज्य में शराब के निर्माण, बिक्री और खपत पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं के एक बैच को सोमवार को विचारणीय करार दिया। सरकार का कहना है कि किसी भी मौजूदा या नए कानून या अतिरिक्त प्रविधान की वैधता पर गौर करने का अधिकार किसी अदालत को नहीं है, जब उसे सुप्रीम कोर्ट ने पहले बरकरार रखा है। शीर्ष अदालत ने वर्ष 1951 में अपने फैसले में इस कानून को बरकरार रखा था।

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चीफ जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस बीरेन वैष्णव की खंडपीठ ने याचिकाओं की स्थिरता के खिलाफ गुजरात राज्य द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्ति को खारिज कर दिया और उन्हें 12 अक्टूबर को योग्यता के आधार पर अंतिम सुनवाई के लिए पोस्ट किया। आदेश की विस्तृत प्रति की प्रतीक्षा है। पीठ ने शुरू में मामलों को अंतिम सुनवाई के लिए 20 सितंबर को पोस्ट किया था। हालांकि, महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी द्वारा और समय मांगने के बाद, हाईकोर्ट ने याचिकाओं पर आखिरी सुनवाई 12 अक्टूबर रखी हैं। महाधिवक्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने किसी कानून को अगर आज वैध ठहराया है, तो वही उसे कल अवैध ठहरा सकती है, गुजरात हाईकोर्ट इसके लिए उचित फोरम नहीं होगा। 

याचिका के मुताबिक, 60 साल से प्रतिबंध के बावजूद आज भी गुजरात में शराब उपलब्ध हो जाती है। इसके लिए एक अंडरग्राउंड नेटवर्क काम करता है। इसमें छोटे-बड़े और संगठित अपराधी व वरिष्ठ सरकारी अधिकारी शामिल हैं।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस मामले को गुण-दोष के आधार पर लिया जाना चाहिए। गुजरात मद्य निषेध कानून-1949 की धारा 12, 13 (शराब के उत्पादन, खरीद, आयात, परिवहन, निर्यात, बिक्री, कब्जे, उपयोग और खपत पर पूर्ण प्रतिबंध), 24-1 बी व 65 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। याचिकाओं में से एक में दलील दी गई है कि छह दशकों से अधिक समय से मद्य निषेध के बावजूद तस्करों, संगठित गिरोहों के नेटवर्क व भ्रष्ट अधिकारियों की सांठगांठ के कारण शराब की आपूíत हो रही है।

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