मुश्किल में घिरे गहलोत, एकेएफआई के आजीवन अध्यक्ष पद से दिया इस्तीफा
नई दिल्ली। कबड्डी से जुड़े तमाम राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय संगठनों पर कई दशकों से कब्जा जमाए बैठे जर्नादन सिंह गहलोत ने खुद को मुश्किल में घिरता देख भारतीय एमेच्योर कबड्ड़ी महासंघ (एकेएफआई) के आजीवन अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है।
अर्जुन अवार्ड विजेता व पूर्व अंतर्राष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी महिपाल सिंह, एस. राजरातिनाम और वीरेंद्र कुमार ने गहलोत और उनके परिवार द्वारा संचालित एकेएफआई और कबड्डी से जुड़े अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को भंग करने और नए सिरे से चुनाव कराने को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है। इस मामले को लेकर फैसला मंगलवार को आना था लेकिन उसे बुधवार तक के लिए टाल दिया गया है।
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गहलोत और उनके परिवार द्वारा किए गए कृत्यों की जांच के लिए न्यायालय ने गौतम नारायण को नियुक्त किया था। गौतम की रिपोर्ट के आधार पर ही न्यायालय को फैसला लेना है।
अपनी याचिका में महिपाल, राजरातिनाम और वीरेंद्र ने कहा है कि गहलोत और उनका परिवार पूरी तरह से महासंघ पर कब्जा किए बैठा है और अदालत के आदेश को भी मानने से इनकार कर रहा है। उन्होंने साथ ही महासंघ पर लाखों रुपये लेकर फर्जी सर्टिफिकेट बांटकर लोगों को सरकारी नौकरी मुहैया कराने का आरोप भी लगाया है।
गहलोत पूर्व में एकेएफआई के अध्यक्ष थे। उनके बाद उनकी पत्नी मृदुला गहलोत इसकी अध्यक्ष बनीं, जो पेशे से डॉक्टर हैं। अब उनके बेटे तेज प्रताप राजस्थान कबड्डी संघ के अध्यक्ष हैं। याचिका दायर करने वाले पक्ष का कहना है कि पूरा परिवार खिलाड़ियों द्वारा उगाहे गए पैसे से देश और विदेश की सैर करता है।
महिपाल सिंह ने बताया कि मामले की गम्भीरता को देखते हुए राजस्थान में खाद्य निगम में चेयरमैन पद पर कार्यरत गहलोत ने 17 मई को अदालत में अपने वकील संजीव कुमार दुबे के माध्यम से एक एफिडेविट देकर एकेएफआई के आजीवन अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है।
महिपाल ने कहा, “सच की जीत हो रही है। गहलोत ने एफिडेविट के माध्यम से एकेएफआई के आजीवन अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। हम जीत की ओर अग्रसर हैं और देश में कबड्डी महासंघ में पारदर्शिता लाने को लेकर कृतसंकल्प हैं।”
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सर्वोच्च न्यायालय के वकील भारत नागर इस मामले में याचिका दायर करने वाले पक्ष के कानूनी सलाहकार हैं। नागर ने कहा, “महासंघ की प्रबंध समिति में किसी भी पद के लिए कभी भी चुनाव नहीं हुए और माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने 30 जनवरी को हुई सुनवाई में यह माना भी था। न्यायालय ने माना था कि पदाधिकारियों का चुनाव हमेशा से निर्विरोध हुआ है, जो गलत है। अब फैसले की घड़ी आ चुकी है और एकेएफआई पर से गहलोत और उनके परिवार का आधिपत्य समाप्त होने वाला है।”
देखें वीडियो:-
https://youtu.be/qzC0uiDsaRs