कभी देखें हैं आजादी से पहले के विज्ञापन, नहीं? तो देखिए लेकिन हंसना मना है…

नई दिल्ली। विज्ञापन एक ऐसी चीज है जिससे आसानी से लोगों का माइंड डाइवर्ट किया जा सकता है। विज्ञापन लोगों की सोच और समझ को देखते हुए ही तैयार किया जाता है। आज के दौरे की जरूरत को ध्यान में रखते हुए ही इसकी स्टोरी बनाई जाती है। लेकिन आज के समय में विज्ञापन काफी क्रीएटिव हो गए जिसे एक अलग अंदाज में बनाए जाता हैं लेकिन क्या आपने कभी आजादी से पहले के विज्ञापन  देखा है? कैसे उसकी स्टोरी बनाई जाती थी? और कैसे उसका रंग रखा जाता था? आज हम को बताने वाले हैं पुराने जमाने के विज्ञापनों के बारे में-

पहले के वक्त में प्रिंट मीडिया का दौर था। विज्ञापनों में इंफोग्राफिक होने से ज्यादा टेक्स्ट लिखा जाता था और रंगीन की जगह ब्लैक इन वाईट स्याही का इस्तेमाल ज्यादा होता था।

-1929 में आया पियर्स साबुन का ये विज्ञापन जितना कलात्मक था उतना ही दिलचस्प भी। इस विज्ञापन में साबुन की तुलना सीधी-सीधी लक्ष्मी जी के कमल के फूल से ही कर दी गई थी।

-इस विज्ञापन के बाद भी रविन्द्रनाथ टैगोर कई विज्ञापनों में नजर आ चुके थे। लेकिन उनके सारे विज्ञापनों में एक चीज खास थी। रविन्द्रनाथ टैगोर ज्यादातर हिन्दुस्तानी प्रोडक्टस का ही विज्ञापन करते नजर आते थे। मिसाल के तौर पर ये विज्ञापन देखिए। इस गोदरेज वेजिटेबल टॉयलेट सोप के विज्ञापन में रवीन्द्रनाथ टेगौर का एक स्टेटमेंट दिया हुआ है जिसमें वो कहते नजर आ रहे हैं कि मुझे गोदरेज साबुन जितना अच्छा किसी विदेशी साबुन के बारे में नहीं पता।

-1941 में लक्स का पहला विज्ञापन सामने आया था जिसमे उस समय की मशहूर बॉलीवुड अदाकारा लीला चिटनिस को फीचर किया गया था।तब लीला चिटनिस के लक्स का प्रचार करने की वजह से इस ब्रांड को खूब तरक्कि मिली थी। लक्स एक ऐसा विज्ञापन है जिसमें अभी तक केवल दो मेल एक्टर शाहरूक खान और अभिषेक बच्चन लक्स को ही रखा गया है।

-मैसूर संदल सोप मैसूर का सबसे ज्यादा बिकने वाले सैंडल साबुन का ये ऐड साल 1930 में आया था। सैंडल साबुन की खास बात थी इसमें इस्तेमाल होने वाली चीजें। ये दुनिया का एकमात्र ऐसा साबुन हैं जिसमें 100 % शुद्ध चंदन तेल का इस्तेमाल किया जाता है।

-1989 में कपिल देव और सचिन तेंदुलकर ने एक साथ बूस्ट को लेकर एक विज्ञापन किया था। इस विज्ञापन को काफी लोग इस कैटेगरी के प्रोडक्ट का पहला विज्ञापन मानते हैं लेकिन ऐसा नहीं था। इससे पहले भी इसी कैटेगरी के एक प्रोडक्ट का विज्ञापन सामने आ चुका है और वो है बॉर्नविटा का विज्ञापन। इस ऐड में और कोई नहीं बल्कि खुद रवीन्द्रनाथ टेगौर नजर आए थे।

-ब्रुक बॉन्ड चाय का ये ऐड द हिंदू अखबार में साल 1946 में छपा था। इस ऐड की खास बात थी इसका बैकड्रॉप जो आसानी से मध्यम वर्ग के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता था।

-कॉन्डम का ऐड 1930 में आया बर्थ कंट्रोलर का ये ऐड वॉशेबल कॉन्डम के नाम से मशहूर हुआ था। उस समय इसका दाम 5 रुपए प्रति दर्जन था, जो काफी महंगा था।

-बुलेट का स्वैग ऐसे कई विज्ञापन उस दौर में आए जो जितना लोगों के लिए नए थे उतना ही अपनी ओर आकर्षित करते थे जैसे की रॉयल एन्फिल्ड का ये ऐड देखिए जिसने बड़े पैमाने पर युवाओं को अपनी ओर आकर्षित किया।

 

-स्टीम नेवीगेशन का ये विज्ञापन 1930 मं  आया था। बाटा का ये विज्ञापन उस समय के बाकी विज्ञापनों से थोड़ा अलग था। वजह थी इसकी प्रेजेंटेशन का तरीका। बाकी विज्ञापनों की तरह इसमे कुछ खास जानकारी नहीं दी गई थी बस कंपनी के नाम के साथ जूतों के तस्वीर लगा दी गई थी।

-प्लाई माउथ नाम की ये कार वैसे तो अमेरिका में 1928 में आई थी पर भारत में इसका पहला विज्ञापन साल 1940 में छपा। कम कीमत की ये कार मध्यम वर्ग के लोगों के लिए मानी जा रही थी। 2001 में इस ब्रांड को मार्केट से वापस ले लिया गया।

साभार फर्स्ट पोस्ट

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