भाग्य को बनाना बिगाड़ना अपने ही हाथों में: श्री मोरारी जी बापू
यदि हम अपने जीवन में परमानन्द की अनुभूति करना चाहते हैं तो इसके लिए हमें अपने कर्मों पर ध्यान देना होगा। भाग्य का रोना रोने से कोई लाभ नहीं होने वाला है जब तक हम उसके लिए प्रयास नहीं करते हैं।
भाग्य को बनाना और बिगाड़ना सब हमारे ही हाथों में है। इसी प्रकार जीवन की हर कठिनाई का हल हमारे पास ही है बस आवश्यकता है उसे जानने की।
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जब इन्सान को किसी अन्य इन्सान की अच्छाइयों और उसकी खूबियों के बारे में जानकारी मिले और उन्हें सुनकर उसे खुशी होती है, तो वहां प्रेम अपनेआप ही प्रकट हो जाता है। प्रेम धीरे-धीरे बढ़े और निरंतर बढ़ता रहे, तो हमेशा प्रेम बना रहता है।
प्रेम भीड़ का विषय नहीं है, एकांत की अनुभूति है। प्रेम को कभी भीड़ में महसूस नहीं किया जा सकता। उसे तो सिर्फ एकांत में ही अपने भीतर उतारा जा सकता है।
हमारे हाथों का बहुत महत्व है जीवन में। ये पुरुषार्थ के प्रतीक हैं। भाग्य हाथों में ही लिखा होता है और हाथों से ही बदला भी जा सकता है। शास्त्रों ने हाथों का बहुत महत्व बताया है। अहंकार कहता है कि भुजा देखो लेकिन शास्त्र कहता है कि हाथों को देखो कि उन्होंने इस संसार में किया क्या है।
अयमे हस्तो भगवान…,
कराग्रे वसते लक्ष्मी कर मुले सरस्वती,
कर मध्ये तू गोविन्दः, प्रभाते कर दर्शनं।।
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इसका अर्थ है – हाथों के आगे के भाग में लक्ष्मी का वास होता है, आखिरी हिस्से में सरस्वती और हथेली के बीच में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण विराजते हैं। अतः सभी को सुबह जागते ही अपनी हथेलियों के दर्शन करने चाहिए।
मनुष्य को अपने धर्म और समाज की भाषा को हमेशा आदर देना चाहिए। असत्य और निंदा के समान कोई पाप नहीं हो सकता है इसलिए जीवन में कभी भी असत्य के सहारे नहीं चलना चाहिए।
जहां वस्तु या विचार में जरूरत से अधिक बढ़ोतरी हो जाए, वहां नियम लागू करना आवश्यक हो जाता है। जिस प्रकार हर रोज वस्त्र बदलते है ताकि शरीर और पहनावा दोनों स्वच्छ दिखें, वैसे ही विचारों में भी शुद्धता लाने का प्रयास करना चाहिए।