गुजरात : बड़ी लम्बी चली लड़ाई, तब जाकर ‘खुले’ से मुक्ति पाई
अहमदाबाद। साल 2014, मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ नरेंद्र मोदी देश की सत्ता संभालने के लिए ‘सिंहासन’ पर बैठे। आते ही तेवर दिखाने शुरू कर दिए। गांधी जी का सपना पूरा करने के लिए स्वच्छ भारत अभियान का आरम्भ कर दिया। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह जिले में एक दलित परिवार को अपने घर के आगे शौचालय बनवाने के लिए लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी। ये लड़ाई पूरे दो साल चली।
गुजरात के मेहसाणा जिले का लक्ष्मीपुरा-भांडू। मेहसाणा से ज्यादा दूर नहीं है। सड़क पक्की है तो दिक्कत भी नहीं होती पहुंचने में। लेकिन यहां के एक परिवार को दिक्कते हुईं। पूरे दो साल। लड़ाई तक लड़ी। प्रशासन से और चौधरियों से। आखिरकार जीते।
इस गांव में दलित परिवार एक ही है। परिवार के मुखिया भीखाभाई सेनमा को अपने परिवार के लिए शौचालय बनवाने में दो साल से ज्यादा का समय लग गया। इतना वक्त इसलिए लगा, क्योंकि उनके आसपास चौधरी हैं।
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चौधरी परिवारों को इनके शौचालाय बनवाने से दिक्कत थी। उन दो वर्षों में खूब कागजी कार्रवाई हुई। जिला मेहसाणा पीएम मोदी का गृह जिला है और यहां से थोड़ी ही दूर पर है उनका जन्मस्थान वडनगर।
यह पूरा वाकया फरवरी 2016 में सामने आया। खबरें बनीं और फिर जिला प्रशासन पर दबाव बनने पर आनन-फानन में भीखाभाई के घर के पास स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचलाय बनवाया गया।
भीखाभाई सनेमा इसी गांव में अपने 13 सदस्यों वाले परिवार के साथ रहते हैं। इस गांव की आबादी करीब पांच सौ है और इनमें ज्यादातर घर चौधरी जाति के हैं। बिल्कुल वैसे ही जैसे हम सब ने फिल्मों में देखा।
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परिवार के युवा सदस्य सेनमा मेहुल के मुताबिक, घर में हर वक्त किसी ना किसी मर्द सदस्य को रहना ही पड़ता है। वो कहते हैं, ‘घर में किसी ना किसी मर्द को रहना पड़ता है। अभी पिताजी बाहर गए हैं, सो मैं यहां हूं।’
उनके मुताबिक सड़क से जाते-आते दूसरी जाति के कुछ लोग फब्तियां कसते हैं। गालियां भी देते हैं। मेहुल बताते हैं, ‘इधर शराब पीते हैं और सड़क से आते-जाते कुछ बोलते हुए जाते हैं। वैसे तो कोई हमें छेड़ता नहीं है, लेकिन भय बना रहता है।’
सेनमा मेहुल ने बताया कि, उनके परिवार को कोई सदस्य गांव के मंदिर की चौखट नहीं लांघ सकता है और इसी वजह से इन्होंने अपने घर के बाहर मंदिर बनवाया है।
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शौचालय बन जाने के बाद यह परिवार अपने घर के आगे एक पक्की दीवार बनवाना चाहता है, ताकि सड़क और उनके घर के बीच एक पक्का पर्दा बन सके। फिलहाल परदे का काम कुछ हद तक वो झाड़ियां कर रही हैं, जो इन्होंने लगाई हैं।
असल में परिवार के पास कोई बाथरूम नहीं है। नल भी बस दरवाजे पर ही लगा है। परिवार के मर्द सदस्यों के लिए तो कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन महिला सदस्यों को नहाने से लेकर कपड़ा धोने तक का सारा काम इसी नल के पर करना पड़ता है। ऐसे में परिवार की महिलाएं नहाने के लिए अंधेरे का सहारा लेती हैं।
परिवार की एक मात्र युवती रिंकू से पूछा कि तुम कब नहाती हो तो वो हंसते हुए कहती है, ‘सुबह के चार बजे। जब अंधेरा रहता है। सुबह होने के बाद तो नहा नहीं सकती ना, सो सुबह-सुबह अंधेरे में ही नहाती हूं।’
शौचालय बनवाने के लिए इस परिवार को जो लड़ाई लड़नी पड़ी उससे उन दावों की पोल खुलती है, जिसे भारतीय जनता पार्टी अपना कॉपी राइट समझती है।
साभार : आजतक