‘भोपाल गैस त्रासदी’ : इन फिल्मों ने दिखाई वो खौफनाक रात

नई दिल्ली। नींद और मौत एक जैसी ही होती है। ये कहावत तो सबने सुनी ही होगी। पर देखी सबने नहीं होगी। देखना कोई सपने में भी नहीं चाहेगा। लेकिन दुनिया में कुछ ऐसी त्रासदी हुईं, जिन्हें सबने देखा। इन्हीं में से एक था भोपाल गैस कांड। हजारों निर्दोष लोगों के जीवन की स्याह रात बन गई।

भोपाल गैस कांड

साल 1984 की खौफनाक 2-3 दिसंबर की आधी रात। पूरा देख नींद के आगोश में था। इस रात के बाद हजारों की सुबह हुई ही नहीं। दर्द आज भी है। इसी रात भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कीटनाशक संयंत्र से लीक हुई जहरीली गैस ने हजारों निर्दोषों की जान ले ली थी। ये दर्द बड़े पर्द पर भी दिखाया गया। कई फिल्मकारों ने फिल्में बनाकर इस त्रासदी के पीड़ितों का दर्द बयां पर्दे पर दिखाया।

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‘भोपाल एक्सप्रेस’- फिल्मकार महेश मिथाई ने 1999 में यह फिल्म बनाई थी, जिसमें के.के मेनन, नसीरूद्दीन शाह, नेत्रा रघुरामन और जीनत अमान जैसे उम्दा फिल्म कलाकारों ने काम किया था। फिल्म में भोपाल गैस कांड से प्रभावित एक नवदंपति के जीवन को दिखाया गया था।

‘भोपाल: ए प्रेयर फॉर रेन’- फिल्मकार रवि कुमार ने 2014 में यह फिल्म बनाई थी। हॉलीवुड कलाकार मार्टिन शीन, मिशा बर्टन, काल पेन और भारतीय कलाकार राजपाल यादव और तनिष्ठा चटर्जी ने इसमें काम किया है।

‘संभावना’- फिल्मकार जोसेफ मेलन ने चार साल पहले भोपाल गैस त्रासदी पर डॉक्युमेंट्री बनाई थी, जो आज भी दर्शकों का दिल दहला देती है। एक तरफ जहां डॉव केमिकल ने भोपाल के निर्दोष लोगों के प्रति अपने उत्तरदायित्व से मुंह मोड़ लिया था, वहीं संभावना क्लीनिक जैसे छोटे से अस्पताल ने हजारों पीड़ितों को मुफ्त में उपचार और चिकित्सा देकर मानवीयता की मिसाल पेश की थी।

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‘भोपाली’- गैस त्रासदी की घटना से हटके फिल्मकार वैन मैक्समिलियन कार्लसन ने त्रासदी पीड़ितों के हालात और स्थिति पर केंद्रित डॉक्युमेंट्री बनाई थी, जिसमें यूनियन कार्बाइड के खिलाफ पीड़ितों की न्याय के लिए जंग को दिखाया गया था।

‘द यस मेन फिक्स द वर्ल्ड’- यह राजनीतिक डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार एंडी बिचलबम और माइक बोनान्नो ने मिलकर बनाई थी। फिल्म मुख्य रूप से भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के हक और न्याय की लड़ाई पर केंद्रित थी। निर्देशक कुर्त एंगफेहर ने भी फिल्म में योगदान दिया था।

‘वन नाइट इन भोपाल’- बीबीसी ने काल्पनिक किरदारों और कहानी से इतर साल 2004 में यह डॉक्युमेंट्री बनाई थी, जिसमें भोपाल गैस कांड पीड़ितों और भुक्तभोगियों के दर्द और अनुभवों को उन्हीं की जुबानी पर्दे पर चित्रित किया गया था।

 

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