‘दलित पॉलिटिक्स’ बना भाजपा का ब्रह्मास्त्र, अन्य दलों में बढ़ी हलचल

रिपोर्ट- अनुभव शुक्ला

लखनऊ। मिशन 2019 में बीजेपी एक बार फिर दलित एजेंडे को लेकर आगे बढ़ रही है। एससी/एसटी संशोधन बिल पर सरकार की ओर से लोकसभा में जो बयान दिया गया। उससे तो साफ लगता है कि बीजेपी की निगाहें दलित वोटबैंक पर हैं।

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खासतौर से अगर उत्तर प्रदेश की बात करें, तो 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत में दलितों ने सबसे अहम भूमिका निभाई और एक बार फिर बीजेपी दलित वोटबैंक को साधने में जुट गई है। जबकि विपक्ष का कहना है कि इस बार दलित बीजेपी के बहकावे में नहीं आएंगे।

देश में दलितों की कुल आबादी तकरीबन 24।4 फीसदी है। वहीं उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां दलित लगभग 21।6 फीसदी है। लोकसभा की 131 सीटें एससी/एसटी के लिए रिजर्व है, तो इनमें से अकेले 17 सीटें यूपी की हैं।

वहीं उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 84 सीटें एससी के लिए तो 2 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। जाहिर सी बात है कि यूपी की सियासत में दलितों की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। और यही वजह है कि सभी सियासी पार्टियां दलितों को अपनी ओर लुभाने में जुटी रहती हैं।

यूपी में दलित वोटबैंक पर मायावती का बोलबाला समझा जाता था। लेकिन 2014 और 2017 के चुनावों ने इस सोच को बदल दिया। क्योंकि बीजेपी की जीत में दलितों की अहम भूमिका रही। और यही वजह है कि एक बार फिर बीजेपी दलित वोटबैंको साधने में जुट गई है।

प्रदेश में जब बीजेपी के नेताओं ने 13000 से ज्यादा जगहों पर चौपाल लगाई, तो उनमें 85 फीसदी वो गांव रहे जहां दलित आबादी सबसे ज्यादा है। इतना ही नहीं केंद्र सरकार की ओर से चलाई जा रही तमाम योजनाओं चाहे वो उज्जवला योजना हो, प्रधानमंत्री आवास योजना हो। सभी में लाभार्थी सबसे ज्यादा दलित समाज से आते हैं।

सरकार के मंत्री भी ये मान रहे हैं कि 2014 और 2017 में दलितों ने बीजेपी का साथ दिया। वो कह रहे हैं कि अगर बीजेपी दलितों के हित की बात कर रही है, तो किसी को इसमें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। उनका कहना है कि यूपी में कोई भी साथ क्यों ना आ जाए दलित बीजेपी के ही साथ रहेंगे।

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वहीं विपक्ष को लगता है कि 2019 के चुनावों में उनकी तैयारी बीजेपी पर भारी पड़ेगी। कांग्रेस के एमएलसी दीपक सिंह कहते हैं कि बीजेपी ने साढे चार साल में जनता से किया कोई भी वादा पूरा नहीं किया है। और मोदी सरकार की हकीकत लोगों के सामने है।

ऐसे में दलित इस बार बीजेपी पर भरोसा नहीं करेंगे। लेकिन वो एसपी-बीएसपी के गठबंधन के बाद दलितों को अपने साथ कैसे जोड़ेंगे इस सवाल का जवाब उनके पास नहीं है।

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राजनीति में हमेशा से ही दलितों का वोट पाने के लिए सियासी दलों में होड़ मची रहती है। और यूपी में तो ये कुछ ज्यादा ही है। यही वजह है कि 2019 के चुनावों से पहले एक बार फिर सभी दल दलितों को अपने पाले में लाने में जुट गये हैं।

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