CSIR-CDRI के फाइटोफार्मास्युटिकल उत्पाद, “पिक्रोलिव” को फैटी लीवर रोग के उपचार के लिए तीसरे चरण का नैदानिक परीक्षण करने की मंजूरी
गैर-अल्कोहोलिक वसीय यकृत रोग (नॉन अल्कोहोलिक फ़ैटी लीवर डिजीज या संक्षेप में एनएएफ़एलडी) दुनिया में एक मूक महामारी सा बन गया है जो कि यकृत सिरोसिस और यकृत कैंसर का मुख्य कारण बनता है। सीएसआईआर-सीडीआरआई ने ड्रग कंट्रोलर जनरल इंडिया (डीसीजीआई) के फाइटोफार्मास्युटिकल मोड के तहत पिक्रोराईजा कुरोआ नामक पौधा जिसे कुटकी भी कहा जाता है, से मानकीकृत औषधि उत्पाद “पिक्रोलिव” विकसित किया है। निदेशक, डॉ. डी. श्रीनिवास रेड्डी ने बताया कि सीएसआईआर-सीडीआरआई को गैर-अल्कोहोलिक फैटी लीवर रोग (एनएएफएलडी) के रोगियों में तृतीय चरण के नैदानिक परीक्षण करने की अनुमति मिल गई है।
नई दवा लीवर में वसा की मात्रा और उसके बाद की जटिलताओं को कम कर सकती है। आईसीएमआर नई दिल्ली के सहयोग से एम्स दिल्ली, आईएलबीएस दिल्ली, पीजीआईएमईआर चंडीगढ़, केईएम मुंबई, निम्स हैदराबाद और केजीएमयू लखनऊ के छह अस्पतालों में मरीजों पर इस औषधि का परीक्षण किया जाएगा।
गैर-अल्कोहोलिक वसायुक्त यकृत रोग (NAFLD) क्या है?
नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लीवर डिजीज (NAFLD), उन लोगों के लीवर में अतिरिक्त चर्बी के जमा होने से होता है जो शराब (अल्कोहल) का सेवन नहीं करते हैं। एनएएफ़एलडी मानव इतिहास में जिगर (यकृत) की सबसे अधिक प्रचलित की बीमारी है, व्यापकता अनुमानों से संकेत मिलता है कि यह रोग विश्व स्तर पर लगभग दो अरब लोगों को प्रभावित करता है। भारत में सामान्य जनसंख्या के लगभग 25-30% हिस्से में इस रोग के होने की आशंका है। सीएसआईआर-सीडीआरआई के चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. विवेक भोसले ने बताया कि मोटे व्यक्तियों या मधुमेह वाले लोगों में यह एक सामान्य लक्षण है। आमतौर पर इस रोग के कोई विशेष लक्षण नहीं होते हैं जिसकी वजह से इसे साइलेंट किलर भी कहते हैं। हालांकि, कुछ मरीजों में सामान्यतः पेट में दर्द हो सकता है जो पेट के मध्य या दाहिने ऊपरी हिस्से में केंद्रित हो सकता है। इसके अलावा थकान और कमजोरी भी हो सकती है। कुछ मामलों में लीवर बड़ा हो सकता है।
पेट का अल्ट्रासाउंड, हालांकि, यकृत पर फैटी जमा दिखा सकता है और निदान की पुष्टि कर सकता है। रक्त परीक्षण में यकृत एंजाइमों जैसे एस्पार्टेट ट्रांसएमिनेस (एएसटी) और एलानिन ट्रांसएमिनेस (एएलटी) की हल्की अधिकता पाई जाती । हालांकि, कई मामलों में रक्त परीक्षण भी सामान्य हो सकता है। इनमें से कुछ लोगों को नॉन-अल्कोहलिक स्टीटोहेपेटाइटिस, या एनएएसएच – जो फैटी लीवर बीमारी का एक उन्नत रूप है विकसित हो सकता है, जिसमें लीवर में लगातार बढ्ने वाली सूजन एवं घाव के निशान बन जाते हैं जो आगे चलकर लीवर कैंसर में भी बदल सकते हैं जिसकी परिनीति यकृत प्रत्यारोपण या मृत्यु के रूप में ही होती है।
उपचार दिशानिर्देश इस बात की पुष्टि करते हैं कि आहार और जीवनशैली में बदलाव एनएएसएच के लिए सबसे प्रभावी उपचार हैं। वे अनुशंसा करते हैं: एक स्वस्थ आहार लेना, हर हफ्ते कम से कम 150-200 मिनट मध्यम-तीव्रता वाले एरोबिक व्यायाम करना, स्वस्थ वजन बनाए रखना, शराब और धूम्रपान से परहेज करना, मधुमेह या हृदय रोग जैसी अन्य बीमारियों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना। प्रारंभिक हस्तक्षेप और उपचार रोग को आगे बढ्ने से रोक सकता है और यकृत की विफलता (रीनल फ़ेलियर), यकृत कैंसर और मृत्यु को रोक सकता है।
इस स्थिति से निबटने के नई प्रभावी औषधि एवं चिकित्सा की महती आवश्यकता है। एनएएफ़एलडी के उपचार के लिए फार्माको-थेरेप्युटिक्स विकल्प बहुत ही सीमित हैं, और उपचार में मुख्य रूप से जीवनशैली संबंधी सुझावों पर ही ध्यान केंद्रित किया गया है, जो कि अधिकांश रोगियों द्वारा लंबे समय तक पालन करना और उस जीवन शैली को बनाए रखना मुश्किल होता है।
सीडीआरआई द्वारा पिक्रोलिव के हेपेटोप्रोटेक्टिव सक्रियता हेतु अतीत में किए गए नैदानिक परीक्षण सफल रहे थे और प्लेसीबो की तुलना में क्लीनिकल रिकवरी में तेजी देखी गई थे एवं बिलीरुबिन और एसजीपीटी के स्तर में गिरावट पाई गई थी। वर्तमान क्लीनिकल ट्रायल में एमआरआई द्वारा लीवर में वसा की मात्रा का आंकलन करने की योजना बनाई गई है। मरीज छह महीने तक दिन में दो बार पिक्रोलिव 100मिग्रा कैप्सूल लेंगे। नैदानिक परीक्षण में लीवर एंजाइम, रोगी की भूख और जीवन की गुणवत्ता का भी मूल्यांकन किया जाएगा। आईसीएमआर नई दिल्ली द्वारा स्थापित उत्पाद विकास केंद्रों पर विभिन्न अस्पतालों में अध्ययन किया जाएगा। यह दवा तीसरे चरण के क्लिनिकल परीक्षण के पूरा होने के बाद समाज में उपयोग के लिए उपलब्ध होगी।
फाइटोफार्मास्युटिकल ड्रग क्या होती हैं?
किसी औषधीय पौधे अथवा उसके किसी हिस्से से प्राप्त परिष्कृत और मानकीकृत अंश जिसमें न्यूनतम चार जैव-सक्रिय या फाइटोकेमिकल यौगिक (गुणात्मक और मात्रात्मक रूप से मूल्यांकन) उपस्थित हों तथा जिसका उपयोग किसी रोग के निदान, उपचार, शमन, या विकार की रोकथाम के लिए आंतरिक या बाह्य रूप से होता है उसे एक फाइटोफार्मास्युटिकल औषधि के रूप में परिभाषित किया जाता है। पिक्रोलिव एक फाइटोफार्मास्युटिकल दवा है और पिक्रोराईजा कुरोआ (कुटकी) का एक मानकीकृत अर्क है और इसमें चार मार्करों की पहचान की गई है। प्रयोगशाला जंतुओं में हेपेटोप्रोटेक्टिव प्रभाव के लिए मार्करों का भी परीक्षण किया गया था। फैटी लीवर के जन्तु मॉडल में दवा ने उत्कृष्ट परिणाम दिखाए हैं। वसा की मात्रा में कमी देखी गई है और लीवर एंजाइम में भी सुधार देखा गया है। दवा अतिरिक्त इंफ़्लेंटरी गतिविधियों के साथ एंटीऑक्सीडेंट तंत्र पर काम करती है। यह वसा संचय यकृत के विभिन्न मार्गों को भी प्रभावित करता है। इस उत्पाद को डीसीजीआई द्वारा फाइटोफार्मास्युटिकल दवा के रूप में अनुमोदित किया गया है।
पिक्रोराईजा कुरूआ पौधा जिसे आमतौर पर कुटकि के नाम से जाना जाता है
पिक्रोराईजा कुरूआ (कुटकी) का पौधा एक छोटी बारहमासी जड़ी बूटी है जो उत्तर पश्चिम भारत में हिमालय की ढलानों पर 3000 से 5000 मीटर के बीच उगती है। इस पौधे की खेती हिमांचल प्रदेश के चंबा और शिमला जिले के खेतों में की जाएगी। सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर पौधे की जड़ों की कैप्टिव खेती और प्रसंस्करण करेगा। मार्क फार्मास्यूटिकल्स लखनऊ नैदानिक परीक्षण के लिए जीएमपी शर्तों के तहत कैप्सूल बनाएगा।
औषधि विकास में शामिल वैज्ञानिकों की टीम
सीएसआईआर-सीडीआरआई लखनऊ: डॉ विवेक भोसले, डॉ कुमारवेलु जे, डॉ मनीष चौरसिया, डॉ जिया उर गाईन, डॉ शशिधर, डॉ शरद शर्मा एवं डॉ एस.के. रथ
सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर: डॉ. दिनेश शर्मा, डॉ. अमित कुमार
अन्य रिसर्च सेंटर एवं अस्पताल: आईएलबीएस नई दिल्ली के निदेशक डॉ शिव कुमार सरीन एवं डॉ मनोज कुमार शर्मा; एम्स नई दिल्ली डॉ शालीमार; केजीएमयू लखनऊ से डॉ सत्येंद्र सोनकर, डॉ अजय कुमार; निम्स, हैदराबाद से डॉ उषा रानी, डॉ बी सुकन्या; केईएम मुंबई से डॉ भास्कर कृष्णमूर्ति, डॉ आकाश शुक्ला; पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ से डॉ नुसरत शफीक, केएचएस-एमआरसी, मुंबई से डॉ अजय दुसेजा डॉ अश्विन राउत एवं जयश्री जोशी।