‘तानाशाह’ से लोकतंत्र की खातिर लड़े थे पाक के चीफ जस्टिस, सड़कों पर उतरे थे लोग

सुप्रीम कोर्टनई दिल्ली। ऐसा पहली बार हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जजों ने इस तरह प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी बात रखी हो। न्याय व्यवस्था को लेकर सुप्रीम कोर्ट के चार बड़े जज मीडिया से शुक्रवार को मुखातिब हुए। लेकिन ऐसा दुनिया में पहली बार नहीं हुआ है।

हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में यह ‘अचम्भा’ पहले ही हो चुका है। पाकिस्‍तान का राष्‍ट्रपति बनने के बाद जनरल परवेज मुशर्रफ ने 9 मार्च 2007 को तत्‍कालिक मुख्‍य न्‍यायधीश इफ्तखार मोहम्‍मद चौधरी को इस्‍तीफा देने को कहा था।

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इस आदेश पर पाकिस्तान के चीफ जस्टिस ने परवेज मुशर्रफ को साफ मना कर दिया था। उन्‍होंने राष्‍ट्रपति की बात को मानने से ना सिर्फ मना किया बल्कि लोकतंत्र बचाने के लिए तानाशाह से बगावत तक कर ड़ाली थी।

उनके सपोर्ट में पाकिस्‍तानी वकील भी आ गए थे। चौधरी की एक आवाज पर लोग सड़कों पर उतर गए थे। इसे लोकतंत्र बचाने की मुहिम कहा गया।

रोष इस बात को लेकर भी था कि चौधरी पर गलत व्यवहार करने और पद के दुरुपयोग का आरोप लगाकर इस्‍तीफा मांगा जा रहा था। पर चौधरी के मना कर देने पर मुशर्रफ सरकार ने उन्‍हें सस्‍पेंड कर दिया।

उस समय चौधरी के निलंबन में लाहौर बार एसोसिएशन और वकीलों के अन्‍य संगठन सड़कों पर उतर आए थे। पुलिस और वकीलों के बीच मुठभेड़ की कई घटनाएं हुईं थीं। निलंबन के बाद वकीलों ने इसे गैर-कानूनी बताया था। पूरे पाकिस्‍तान में अदालतों का बहिष्‍कार किया गया।

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