संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ शब्द हटाने के बिल पर हुआ हंगामा, जानें क्या है मामला

‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्दों को 42वें संविधान संशोधन के ज़रिए प्रस्तावना में जोड़ा गया था, जिसे अब हटाने की माँग उठ रही है। आज (6 दिसंबर) भाजपा के सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने कहा कि, “मैंने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाल रखी है, जिसमें संसद की शक्ति पर सवाल उठाते हुए प्रस्तावना में किए गए बदलाव को निरस्त करने की माँग की गई है।” नियम के मुताबिक राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के अभाव में बिल पर चर्चा की अनुमति नहीं दी गई और उपसभापति हरिवंश ने इसे रिज़र्व रखने की व्यवस्था दी। भाजपा सांसद केजे अल्फ़ेंस ने भी राज्यसभा में प्राइवेट मेंबर बिल लाकर प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ शब्द हटाने का प्रस्ताव पेश किया।

जैसे ही केजे अल्फ़ेंस ने इस बिल को पेश किया वैसे ही बिल के विरोध में विपक्षी दलों ने अपनी आवाज़ बुलंद कर दी और ‘नो’ के पक्ष में ज़्यादा आवाज़ आने लगी। इसके बाद, बिल का विरोध करते हुए राजद नेता मनोज झा ने कहा कि, “यह संविधान की आत्मा पर चोट है और सदन इसे पेश करने की अनुमति देकर संसदीय परंपरा को कलंकित ना करे. उन्होंने सदन के संचालन प्रक्रिया के नियम संख्या 62 का उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसे प्राइवेट बिल राष्ट्रपति की सहमति के बिना पेश नहीं किए जा सकते हैं।”

उप सभापति ने स्पष्ट करते हुए कहा कि, “इस बिल के साथ राष्ट्रपति की मंज़ूरी या सिफ़ारिश नहीं है। सदन को बिल पर आपत्ति है। इस मामले में चेयर कोई फैसला नहीं लेगा बल्कि सदन तय करेगा।” हंगामा होता देख इस बिल को रिज़र्व रख लिया गया। बिहार विपक्ष के नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने ट्वीट करते हुए कहा की, “केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा संविधान बदलने की एक चोरी कल संसद में पकड़ी गयी जब इन्होंने संविधान की प्रस्तावना जिसे इसकी आत्मा कहा जाता है उसमें से “समाजवादी” शब्द को हटाने का संविधान संशोधन विधेयक पेश किया लेकिन हमारे सजग और सतर्क सदस्यों ने कड़ा विरोध कर इस विधेयक को वापस कराया।”

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