राजनीति की बदलती परिभाषा… जाने किस ओर जा रहा है देश !

राजनीति की बदलती परिभाषानई दिल्ली। देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम का डंका तो साल 2014 में ही बजना शुरू हो गया था। लेकिन अब ताजा माहौल को देखते हुए ऐसा जान पड़ता है कि लोगों के बीच मोदी लहर का सैलाब इस कदर आया कि विपक्षियों को खड़े होने का कोई भी मौक़ा हासिल नहीं हो पा रहा है। पर इसके इतर मौजूदा समय में सियासी रंगमंच पर जो साम्प्रदायिकता का रंग चढ़ा हुआ है। अब आम जन के सिर से उतर के बड़े-बड़े दिग्गज राजनेताओं के सिर चढ़कर बोलता दिखाई दे रहा है।

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ये रंग ऐसा है, जिसमें सत्तारूढ़ पार्टी कुछ ज्यादा ही सराबोर है। हैरत होती है सोच के कि क्या जंगे आजादी में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाले वीरों ने ऐसे ही आजाद भारत की कल्पना की थी।

कहते हैं कि इतिहास फिर दोहराता है… पर क्या वाकई में एक बार फिर वही इतिहास मौजूदा समाज के अगले पायदान पर वर्तमान बनकर दस्तक दे रहा है।

धर्म के नाम पर लोगों को लड़वाकर एक बार फिर सियासत का खूनी खेल खेलने की योजना तैयार हो रही है।

आखिर क्या मतलब है ऐसी सियासत का जहां लोगों द्वारा इंसानों के काम पर नहीं, बल्कि उनके धर्म को अधिक तरजीह दी जा रही है।

वो हिंदू, मै मुसलमान या तू मुस्लिम और मैं हिंदू। वो हिंदू नहीं वो जैन है। वो हिंदू नहीं पारसी है। उनके दादा पारसी थे। क्या ये मंदिर उनके बाब दादाओं की जागीर है। वगैराह… वगैराह…

बड़ा अफ़सोस होता यह सब देख कर और मन व्याकुल सा हो जाता है। 15 अगस्त 1947 के दिन हासिल हुई आजादी का उत्सव हर साल झूम के मनाते हैं।

हर 26 जनवरी को अपने संविधान के लागू होने के जश्न में सराबोर होते हैं। लेकिन ये भूल जाते हैं कि यह आजादी किसी हिंदू या मुस्लिम के कारण नहीं, बल्कि हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई के समायोजन से भारत की पहचान बनाने वाली एकता की ताकत से हासिल हुई थी।

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मौजूदा समय में बीते यूपी निकाय चुनाव और गुजरात के आने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर जो राजनीतिक पार्टियों में खुद को श्रेष्ठ और बेहतर साबित करने की जंग छिड़ी हुई है। उस पर नज़र डालते हुए गंभीरता से आंकलन करने की जरूरत है कि क्या जो हो रहा है वो वाकई में सही है… या नहीं।

इसका जवाब और किसी को नहीं बल्कि प्रत्येक भारतवासी को सोचने की आवश्यकता है। साथ ही उन सभी राजनीतिक दलों को भी जो सत्ता पर आसीन है या आसीन होने की लालसा रखते हैं।

आइए नजर डालते हैं हाल ही में बीते सभी आरोपों-प्रत्यारोपों और वाद-विवादों पर…

सोमनाथ मंदिर में एंट्री को लेकर जो विवाद उठा उसे भाजपा ने कैश करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। भाजपा ने सियासी दांव खेलते हुए राहुल गांधी को गैर हिंदू कह दिया। वजह मंदिर में एंट्री के दौरान राहुल गांधी के साथ अहमद पटेल भी थे।

इसलिए राहुल गांधी के मीडिया समन्वयक मनोज त्यागी ने मंदिर में एंट्री के दौरान गैर मुस्लिम रजिस्टर में कांग्रेस उपाध्यक्ष का नाम दर्ज कर दिया। मामले के तूल पकड़ने पर मनोज त्यागी ने साफ़ किया कि यह उनकी भूल के कारण हुआ।

मनोज त्यागी ने बाद में एक बयान जारी कर कहा कि उन्होंने मंदिर में मीडियाकर्मियों को अंदर ले जाने के लिए गांधी का नाम दाखिल किया था। यह राहुल गांधी या अहमद पटेल की तरफ से नहीं था। इसे बाद में जोड़ दिया गया होगा।

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वहीं कांग्रेस पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर कहा कि राहुल गांधी ‘जनेऊधारी हिन्दू’ हैं। उन्होंने अपने पिता के अंतिम संस्कार में भी जनेऊ पहना था।

सुरजेवाला ने गुजरात चुनाव में बहस का स्तर गिराने पर बीजेपी की कड़ी आलोचना भी की है। कांग्रेस प्रवक्ता ने दस्तावेज दिखाते हुए कहा कि राहुल गांधी ने विजिटर रजिस्टर में दस्तखत किए हैं कहीं या नहीं।

इसी जगह भाजपा ने कहा कि कांग्रेस ने हमेशा राहुल गांधी को एक हिंदू के तौर पर दिखाने की कोशिश की, लेकिन तथ्य यह है कि वह हिंदू नहीं हैं।

सौराष्ट्र क्षेत्र के भाजपा प्रवक्ता राजू ध्रुव ने कहा कि राहुल गांधी ने अक्टूबर से 20 से ज्यादा हिंदू देवी-देवताओं के मंदिरों का दौरा किया है। कांग्रेस झूठ बोल रही है। दाखिल की गई प्रविष्टि दिखाती है कि वह हिंदू नहीं हैं।

इस पर देश के पीएम नरेंद्र मोदी की ओर से भी बिना किसी का नाम लिए टिप्पणी की जाती है कि सोमनाथ मंदिर क्या उनके बाप-दादाओं की जागीर है।

मामला यहीं खत्म न हुआ। अगले दिन कांग्रेस नेता राज बब्बर भी अपनी पार्टी भक्ति दिखाने आ गए। पार्टी के नेता राज बब्बर ने कहा है कि भाजपा अध्यक्ष धर्म से जैन हैं। लेकिन वह खुद को हिंदू बताते हैं। बब्बर की यह प्रतिक्रिया राहुल गांधी की सोमनाथ यात्रा के बाद आई है।

सोने पर सुहागा तब लगा जब इस मामले में कई कांग्रेसी नेताओं ने दावा किया कि रजिस्टर से जुड़े इस विवाद को हवा देने में घर के भेदी का हाथ है। उनका कहना है कि कांग्रेस का ये नेता भाजपा में जाने की फिराक में है।

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इसके बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेसी नेता राज बब्बर के उस बयान पर पलटवार किया, जिसमें उन्होंने शाह के धर्म पर सवालिया निशान लगा दिया था।

राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस के आरोपों पर करारा जवाब देते हुए कहा है कि देश जानता है कि वह सात पुश्तों से हिंदू हैं।

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस का ज्ञान नहीं है तो क्या करूं। किसी साइट पर देख लिया होगा कुछ लिखा होगा। हजारों साइट्स हैं ऐसी।’

अब बात करते हैं ताजा मामले की तो वित्त मंत्री अरुण जेटली भी कहा पीछे रहने वाले थे। उन्होंने शनिवार (2 दिसंबर) को मीडिया से बातचीत करते हुए कांग्रेस पर जमकर हमला बोला।

सूरत में बोलते हुए जेटली ने गुजरात चुनाव का भी जिक्र किया और कहा कि इसको जीतना भाजपा के लिए काफी जरूरी है क्योंकि राज्य में बीस साल से वह जीत रहे हैं और काम कर रहे हैं।

जेटली ने कहा कि भाजपा को हमेशा से हिंदू समर्थक पार्टी के रूप में देखा जाता है, तो ऐसे में जब असली मौजूद है तो लोग क्लोन पर क्यों विश्वास करेंगे।

भाजपा की लोकसभा सांसद मीनाक्षी लेखी ने शनिवार को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के खुद को शिवभक्त बताने पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि राहुल को भगवान राम पर अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए।

लेखी ने कहा कि वर्ष 2007 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राम सेतु पर दाखिल अपने हलफनामे में भगवान राम के अस्तित्व से ही इनकार कर दिया था।

खुद के शिवभक्त होने का दावा करने से पहले राहुल को भगवान राम के अस्तित्व को स्वीकार करना चाहिए।

उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का विरोध करने पर भी सवालिया निशान लगा दिए।

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