बुंदेलखंड में आजादी की सालगिरह पर ‘सच’ बोलना मना!

छतरपुर पूरा देश बुधवार को आजादी की सालगिरह मनाएगा, सभी यही दोहराएंगे कि वे पूरी तरह आजाद हैं, सत्यमेव जयते, मगर बात मध्य प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड की करें तो यहां सच बोलने पर भी पाबंदी है। आजादी की सालगिरह के मौके पर यहां की छात्राएं एक नृत्य नाटिका के जरिए इलाके के हालात को बयां करना चाहती थीं, मगर उन्हें प्रशासन ने रोक दिया। प्रशासन का मानना है कि गीत के बोल सरकार के खिलाफ हैं।

बुंदेलखंड

भारत का संविधान बोलने की आजादी देता है। मगर मौजूदा दौर में अभिव्यक्ति की आजादी पर सबसे ज्यादा पहरा है, और अब तो आजादी की सालगिरह पर भी इस आजादी पर बेड़ियां डाली जा रही हैं।

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बताया गया है कि प्रदेश के अन्य जिलों की तरह छतरपुर जिला मुख्यालय पर भी आजादी की वर्षगांठ का समारोह आयोजित किया गया है। इसकी अंतिम रिहर्सल सोमवार को हो रही थी। इस दौरान शासकीय कन्या विद्यालय की छात्राओं ने नृत्य नाटिका प्रस्तुत की। इस नृत्य नाटिका में किसान आत्महत्या, किसान दुर्दशा और बेटियों की मन की बात का जिक्र था।

बाबूराम चतुर्वेदी स्टेडियम में मौजूद लोगों ने बताया कि अंतिम रिहर्सल के समय जिलाधिकारी रमेश भंडारी सहित अन्य अधिकारी एक-एक कार्यक्रम को देख रहे थे। इसी दौरान वह नृत्य नाटिका भी आई जिसमें किसान आत्महत्या आदि का जिक्र था। इसे देखते ही प्रशासनिक अमला भड़क उठा और इस कार्यक्रम को तैयार करने वालों की क्लास ले डाली। बाद में यह तय हुआ कि इस नृत्य नाटिका को कार्यक्रम की सूची से हटा दिया जाए।

बुंदेलखंड के राजनीतिक विश्लेषक रवींद्र व्यास का कहना है कि सरकारी तौर पर होने वाले कार्यक्रम तो प्रशासन तय करता है, उसे इस बात की कहां चिंता होती है कि जनता के मन और दिल की बात क्या है। आजादी भले ही मिल गई हो, मगर आम जनता तो अब भी प्रशासनिक व्यवस्था की गुलाम है।

बुंदेलखंड में किसान दुर्दशा किसी से छुपी नहीं है, यह सरकार से लेकर प्रशासन तक जानता है। अगर वह पूरी ईमानदारी से पहल करे तो हालात सुधार सकता है, मगर उसकी मंशा तो यह है कि लोग अपने दर्द तक का जिक्र करना तक भूल जाएं। उसी का एक नमूना मात्र है स्वाधीनता दिवस के कार्यक्रम से छात्राओं की नृत्य नाटिका को हटा देना।

इस नृत्य नाटिका में हिस्सा लेने वाली छात्राएं बेहद दुखी हैं। उन्होंने बताया कि सोमवार को जिलाधिकारी महोदय को गीत के बोल पसंद नहीं आए तो उन्होंने इस नृत्य नाटिका को ही स्वाधीनता दिवस के कार्यक्रम की सूची से हटाया दिया। छात्राओं ने बताया कि इस गीत में सूखा के संकट, किसानों की परेशानी, पानी का संकट, कर्ज की मार और आत्महत्या करते किसानों का जिक्र था।

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सांस्कृतिक कार्यक्रम की सूची से बालिकाओं की नृत्य नाटिका आखिर क्यों हटाई गई, यह जानने के लिए जिलाधिकारी भंडारी से कई बार संपर्क किया गया, मगर वे उपलब्ध नहीं हुए। उन्हें मैसेज भी किया गया, मगर उनका जवाब नहीं आया।

सवाल उठ रहा है कि यह कैसी आजादी है कि बच्चे अपने दर्द और क्षेत्र के हालात को भी कार्यक्रम के जरिए बयां न कर सकें। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस इलाके में बच्चों को अपनी बात सार्वजनिक तौर पर कहने से रोका जाए, वहां बड़े और बुजुर्गो का क्या हाल होगा।

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