देश का पहला सिल्वर मेडलिस्ट जिसके निशाने पर था जनहित कार्य!

अमित विक्रम शुक्ला

सफलता और असफलता में कोई ज्यादा अंतर नहीं होता। अंतर होता है, तो हमारे और आपके सोच में। हां… एक बात और जिसे आप गांठ बांध सकते हैं कि सफल व्यक्ति कोई अलग कार्य नहीं करते। बल्कि उन्ही कामों को अलग तरीके से करते हैं। लेकिन इसी सोच को विकसित करने में किसी-किसी को पूरी ज़िन्दगी भी कम पड़ जाती है, तो कोई अपनी मेहनत के दम पर थोड़े ही समय में ऐसा मुकाम हासिल कर लेता है, जिसे दुनिया सलाम ठोंकती है।

वैसे तो राजनीति और खेल का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। लेकिन आधुनिक राजनीति अपने चरम पर है। जहां सियासत के दांवपेंच के साथ-साथ मैदान में राजनीतिज्ञों की उछल कूद भी देखने को मिल जाती है।

वो चाहे सरकारी आवास खाली करने के बाद यूपी के पूर्व मुखिया अखिलेश यादव रहे हों। (जिन्होंने जमीनी स्तर पर अपने सियासी स्टंप को गाड़ने की शुरुआत पार्क में क्रिकेट खेल रहे बच्चों के साथ बल्ला थाम कर किया)।

या फिर भाजपा का वो नेता, जिसके अचूक निशाने ने न सिर्फ ओलंपिक में मैदान में मैडल दिलाया। बल्कि पार्टी को भी विरोधियों के किले को भेदने में मदद की।

आज हम बात करेंगे उस राजनेता की। जो प्रधानसेवक नरेन्द्र मोदी के आंखों का तारा कहा जा सकता है। जिसकी फुर्ती खेल और सियासत के मैदान में भलीभांति उजागर हो चुकी है।

राज्यवर्धन राठौर

दरअसल, हम कर रहे हैं। केन्द्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर के बारे में। ये वही नाम है। जिसकी गूँज सबसे पहले 2004 उठी। जब राज्यवर्धन ने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए ‘एथेंस ओलंपिक’ में रजत पदक जीता था।

प्रारंभिक जीवन

‘राज्यवर्धन सिंह राठौर’ का जन्म 29 जनवरी, 1970 को जैसलमेर, राजस्थान में हुआ था। उनके घर का नाम ‘चिली’ है। उनके पिता सशस्त्र बल में थे। राज्यवर्धन सिंह ने अपनी स्कूली शिक्षा सेंट्रल स्कूल से पूरी की। पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए उन्होंने भी सेना में दाखिला लिया।

इसके बाद वे 1991 में भारतीय सेना में अधिकारी बन गए। उन्होंने प्रारंभिक दिनों से ही एक विजेता के रूप में कार्य किया। वे बेहद शांत प्रकृति के थे, बहुत कम बोलते थे, जोकि अब संभव नहीं रहा। वैसे तो शुरूआती दिनों में निशानेबाजी की रेंज के अलावा उनका किसी से कोई सरोकार नहीं रहा।

राज्यवर्धन राठौर

राज्यवर्धन सिंह राठौर ने सिडनी में विश्व चैम्पियनशिप में निशानेबाज़ी में गोल्ड मेडल जीता। उन्हें विश्व रैंकिंग में नंबर तीन पर स्थान दिया गया था। वह अपनी बंदूकों को वैसे ही प्यार करते हैं जैसे कि एक संगीतकार अपने उपकरण से प्यार करता है।

बप्पी लहरी

चलो एक और उदाहरण लेलो क्या जाता है, जैसे ‘बप्पी लहरी अपने सोने की भारी भरकम चेनों से करते हैं‘।

शूटिंग की शुरुआत

1998 में राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने शूटिंग की शुरुआत की थी। जल्द ही वह दुनिया के बेहतरीन ट्रैप शूटरों में गिने जाने लगे। साल 2003 में साइप्रस के शहर निकोसिया में उन्होंने विश्व चैंपियनशिप का कांस्य जीता था।

स्पर्धा के पहले राठौड़ ने कहा था- “मैदान-ए-जंग में शूटिंग ओलंपिक पदक जीतने से ज्यादा आसान है। स्पर्धा के माहौल में आपके अंदर का डर बाहर निकलकर आता है।” उन्होंने सेना छोड़कर खेल के मैदान में भी कचर के बाजी मारी।

बप्पी लहरी

उन्होंने अपनी उपलब्धि के बारे में कहा- “हमारे देश में क्रिकेट बहुत महत्त्वपूर्ण है। मुझे भी यह पसन्द है, लेकिन मेरी उपलब्धि से लोग शूटिंग जैसे खेलों में भी आएंगे।”

एथेंस ओलम्पिक के रजत विजेता

राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने वर्ष 2004 के एथेंस ओलम्पिक में भारत के लिये रजत पदक जीता। इसके साथ ही वे ओलंपिक पदक जीतने वाले प्रथम भारतीय निशानेबाज़ बन गए। राठौड़ ने क्वालीफाइंग राउंड में 135 (46,43,46) का स्कोर कर पांचवां स्थान प्राप्त किया था। लेकिन फ़ाइनल में उन्होंने अपना स्तर उठाते हुए 50 से 44 निशाने साधे और कुल 179 के स्कोर के साथ रजत पदक जीत लिया।

रजत पदक

वहीँ संयुक्त अरब अमीरात के अहमद अल मख्तूम ने क्वालीफांइग दौर में 144 का स्कोर किया था और फ़ाइनल में 45 का स्कोर कर कुल स्कोर 189 पर पहुंचा कर स्वर्ण पदक हासिल किया।

ओलंपिक इतिहास में भारत का यह चौथा पदक और पहला व्यक्तिगत रजत पदक था। इससे पूर्व पहलवान खाशाबा जाधव ने 1952 के हेलसिंकी में कांस्य, टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस ने 1996 के अटलांटा ओलंपिक में कांस्य और भारोत्तोलक कर्णम मल्लेश्वरी ने 2000 के सिडनी ओलंपिक में कांस्य पदक जीते थे।

यहीं से राज्यवर्धन सिंह ने सफलता सीढियां चढ़ना शुरू किया था। जोकि अभी तक जारी है। वो कहते हैं न कि कड़ी मेहनत और बेहिसाब जज्बा इंसान को शीर्ष तक पहुँचाने में बहुत मदद करता है। कुछ वैसा ही राठौर की ज़िन्दगी में हुआ।

40 साल बाद राज्यवर्द्धन ने देश को दिलाया खिताब

राज्यवर्धन ने 40 वर्षो के बाद देश के लिए शूटिंग वर्ल्डि चैंपियनशिन का खिताब जीता था। राज्य वर्द्धन ने वर्ष 2002 से 200 6 के बीच विभिन्न अतंराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स में 25 पदक अपने नाम किए हैं।

पुरस्कारों से सजा ड्राइंग रूम

राठौर को 1989 में एनडीए का सर्वोच्च पुरस्कार ब्लेज हासिल हुआ है। यह पुरस्काकर एनडीए में सर्वश्रेष्ठ  खिलाड़ी को मिलता है। इसके बाद उन्हें  आईएमए में स्वॉर्ड ऑफ ऑनर का पुरस्कार मिला।

राज्यवर्धन

राज्यवर्धन को अर्जुन पुरस्कार, राजीव गांधी खेल रत्न और पद्मश्री के साथ ही अति विशिष्ठ सेवा मेडल भी मिला है।

अब निशानेबाज नहीं… अब राजनीतिज्ञ बोलो!

23 वर्ष तक सेना की सेवा करने और भारत के लिए पहला व्यक्तिगत ओलंपिक रजत पदक जीतने वाले पद्मश्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने एकाएक राजनीति के मैदान में कूदकर सबको चौंका दिया। वह 2014 के आम चुनाव में लोकसभा के सदस्य चुने गए। तत्पश्चात उन्हें मोदी सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त हुआ।

राज्यवर्धन

इसके बाद राज्यवर्धन सिंह राठौर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक उन्हें अहम विभाग मिलता गया। मौजूदा समय में राठौर के पास भारी भरकम मत्रालयों में से एक सूचना प्रसारण और खेल खेल मंत्रालय है। जिसके लिए वो दिनों रात मेहनत में लगे हुए हैं।

राज्यवर्धन सिंह राठौर से एकबार सवाल किया गया था कि बहुत कम उम्र में बहुत कुछ हासिल किया। लेकिन फिर अचानक राजनीति में आने का फैसला कर लिया।

इस पर उन्होंने कहा कि वो 47 साल के हैं और उनके जीवन में हर चीज बहुत देर से हुई है। उन्होंने बताया कि जिंदगी में पहली बार जब उन्होंने शूटिंग रेंज को देखा तब उनकी उम्र 28 साल थी। साथ ही उन्होंने बताया कि बीजेपी में उन्हें मेरिट के ऊपर टिकट दिया गया था और मेरिट देखकर ही मंत्रालय भी दिया गया।

राज्यवर्धन सिंह राठौर प्रथम भारतीय (स्वतंत्रता के बाद) हैं, जिन्होंने निशानेबाज़ी में व्यक्तिगत रजत पदक जीता। अर्जुन पुरस्कार विजेता राज्यवर्धन देश के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न से भी सम्मानित किए गए। आज हर एक भारतीय को उनपर गर्व है।

राजनीतिक जीवन 10 सितंबर 2013 को राठौर बीजेपी में शामिल हुए और इसके पहले वह रेवाड़ी में नरेंद्र मोदी की एक रैली का हिस्सा बने थे। राठौर ने राजनीति में आने के लिए सितंबर 2013 में ही सेना से वॉलेंटरी रिटायरमेंट ले लिया और बतौर कर्नल वह अपने पद से रिटायर हुए।

राठौर जयपुर ग्रामीण संसदीय सीट से चुनावी मैदान में उतरे और धमाकेदार वोटों से चुनाव जीते। राठौर के मुताबिक, “उनकी स्थिति राजनीति में सेना के सेकेंड लेफ्टिनेंट जैसी ही है। वह कहते हैं कि वह बिना लाइफ जैकेट और बुलेट प्रूफ जैकेट के इस समंदर में कूद गए। लेकिन साथ ही उन्हें  जीत का पूरा भरोसा था”

राज्यवर्धन

“राठौर की मानें तो आर्मी ने उन्हें चुनौतियों का सामना करना काफी बेहतरी से सिखाया है। जिस समय वह आर्मी का हिस्सा थे उस समय उनकी पोस्टिंग कश्मीर में थी।  इसी वर्ष उन्होंने देश के लिए रजत पदक जीता था और एक बार फिर वही जोश उन्हें सोने नहीं देता है।”

वह कहते हैं कि वह देश और लोगों की सेवा करने के लिए राजनीति में आना चाहते थे और उनकी पूरी कोशिश रहेगी कि वह लोगों की उम्मीदों पर खरा उतर सकें।

पहली पसंद बनी भाजपा

राज्यवर्धन की मानें तो उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह राजनीति में आएंगे। लेकिन एक पल को उन्हें लगा कि आर्मी के बाद शायद यह देश सेवा का बेहतरीन विकल्प है।

राज्यवर्धन

ऐसे में उन्हें  बीजेपी के अलावा कोई और पार्टी नजर नहीं आई जिसके साथ वह खुद को जोड़ सकें।

उपलब्धियां

#वर्ष 2002 के राष्ट्रमंडल खेलों में मानचेस्टर (इग्लैण्ड) में दो स्वर्ण पदक जीते।

#आई.एस.एस.एफ. विश्व शॉटगन कप, दिल्ली में 2003 में कांस्य पदक जीता।

#2003 में साइप्रस के निकोसियां में विश्व शूटिंग चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता।

#2004 में सिडनी विश्व कप में स्वर्ण पदक जीता।

#2004 में ही चेक मास्टर्स कप (चेक गणराज्य) में स्वर्ण पदक हासिल किया।

#17 अगस्त 2004 को एथेंस ओलंपिक, ग्रीस में रजत पदक प्राप्त किया।

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