लोगों की प्राइवेसी लीक होने से नहीं रोक सकता आधार कानून

नई दिल्ली| सर्वोच्च न्यायालय को बताया गया है कि 2009 से आधार परियोजना के तहत संग्रह किए गए बायोमेट्रिक डाटा से जो निजता के अधिकार पर हमला हुआ है, उससे 2016 के कानून से नहीं बचा जा सकता है और यह विधिसंगत नहीं हो सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय

वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम ने पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को बताया, “मेरी निजी सूचना संग्रहित करके दूसरों के साथ उसे साझा करने से जो मेरे अधिकार (निजता) पर हमला हुआ है, उसे आधार का विधिमान्य बनाने वाले दूसरे कानून से नहीं दुरुस्त किया जा सकता है।”

वह आधार (वित्तीय व अन्य अनुदान, लाभ व सेवा प्रदान करने का लक्ष्य) अधिनियम 2016 के संदर्भ में बोल रहे थे।

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प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा समेत न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने आधार अधिनियम की धारा 59 का जिक्र किया और कहा कि वैधानिक व्यवस्था के पूर्व विधिमान्य बनाने की जो कवायद है, वह अवैधता को दुरस्त करने के लिए है।

याचिकाकर्ता, मेजर जनरल एस.जी. वोंबेटकेरे (अवकाश प्राप्त) और कर्नल मैथ्यू थॉमस (अवकाश प्राप्त) की ओर से पेश होते हुए सुब्रह्मण्यम ने कहा कि आधार अधिनियम 2016 अवैधता को साध्य बनाने का प्रयास था, लेकिन साध्य भी साध्यता के दायरे होना चाहिए।

अदालत ने कहा, “कानून का दूरदर्शी प्रयोग होता है और कोई भी दंड विधि पीछे पश्चदर्शी नहीं होती है, जैसा कि धारा 59 में बायोमेट्रिक डाटा संग्रह करने व उसका इस्तेमाल करने के लिए 2009 से सभी सरकारी अधिसूचनाओं को विधि सम्मत बनाने के बारे में उल्लेख है।”

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सुब्रह्मण्यम द्वारा 2009 में संग्रहित बायोमेट्रिक डाटा के अवैध ठहराने पर अदालत ने उनसे पूछा, “क्या हमें सात साल पहले संग्रह किया गया डाटा नष्ट कर देना चाहिए।”

अधिवक्ता ने पीठ से कहा, “कुछ चीजें हैं, जो हम साझा नहीं करना चाहते हैं। आपकी सारी गतिविधियों के लिए एक पहचान कैसे हो सकती है।”

पीठ कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के.एस. पुटुस्वामी, मैगसेसे अवार्ड विजेता शांता सिन्हा, नारीवादी शोधार्थी कल्याणी सेन मेनन व अन्य की ओर से निजता के मौलिक अधिकार की कसौटी को लेकर आधार परियोजना की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। यह सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी।

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