दुष्कर्म और तेजाब हमले की शिकार हमीरपुर की 16 साल की नाबालिग ने तोड़ा दम, छह अस्पतालों की दौड़ और स्ट्रेचर पर तीन दिन, सिस्टम की लापरवाही पर सवाल

उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में एक महीने पहले हुए सामूहिक दुष्कर्म और तेजाब हमले की भयावह घटना ने एक 16 वर्षीय नाबालिग की जिंदगी छीन ली। गुरुवार रात करीब दो बजे लखनऊ मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान उसकी सांसें थम गईं।

पीड़िता को छह अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़े, सात बार रेफर किया गया और आखिरकार तीन दिनों तक स्ट्रेचर पर लेटे रहने के बाद बेड मिला, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। इस पूरे प्रकरण ने स्वास्थ्य व्यवस्था की अव्यवस्था, आर्थिक कमजोरी और लापरवाही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, जहां हर कदम पर परिवार टूटता नजर आया।

घटना 28 अक्टूबर की रात की है। जलालपुर थाना क्षेत्र के एक गांव में पीड़िता घर में सो रही थी, तभी तीन युवकों – जिनमें एक नाबालिग भी शामिल है – ने दीवार फांदकर घर में घुसेड़ा। आरोप है कि उन्होंने नाबालिग के साथ क्रूरता से सामूहिक दुष्कर्म किया और विरोध करने पर उसे जबरन तेजाब पिला दिया। बेहोशी की हालत में परिजनों ने तुरंत सरीला सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) पहुंचाया, जहां से उसे झांसी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया। पीड़िता ने वहां भी अपने बयान में दुष्कर्म का आरोप दोहराया, जिसके बाद मामला सुर्खियों में आ गया।

झांसी मेडिकल कॉलेज में करीब 12 दिनों तक इलाज चला, लेकिन हालत में कोई सुधार न होने पर डॉक्टरों ने पहली बार पीजीआई लखनऊ रेफर किया। हालांकि, वहां भारी खर्च की बात सुनकर परिवार झांसी से ही हमीरपुर जिला अस्पताल लौट आया। यहां फिर पीड़िता ने मीडिया के सामने अपनी आपबीती सुनाई, जिसके बाद उसे कानपुर के हैलट अस्पताल भेजा गया। वहां लगभग 15 दिनों तक उपचार चला, लेकिन स्थिति लगातार बिगड़ती गई।

चिकित्सकों ने दूसरी बार कानपुर से पीजीआई लखनऊ रेफर किया, जहां दो दिनों के इलाज के दौरान हल्का सुधार दिखा। लेकिन सर्जरी के लिए पिता से दो लाख रुपये जमा करने की मांग की गई। आर्थिक तंगी के कारण राशि जुट न सकने पर पीड़िता को लखनऊ मेडिकल कॉलेज ट्रांसफर कर दिया गया।

लखनऊ मेडिकल कॉलेज पहुंचने पर भी व्यवस्था ने परिवार को निराश किया। गंभीर हालत के बावजूद उसे तीन दिनों तक स्ट्रेचर पर ही रखा गया – न बेड मिला, न तत्काल वार्ड। बुधवार दोपहर करीब तीन बजे आखिरकार सर्जरी वार्ड में शिफ्ट किया गया। डॉक्टरों ने बताया कि उसके शरीर में खून की मात्रा मात्र चार पॉइंट्स बची थी, जिसके लिए तुरंत ट्रांसफ्यूजन जरूरी था। लेकिन पूरे गुरुवार को अस्पताल में खून उपलब्ध न हो सका। बाद में जलालपुर के इंस्पेक्टर अजीत सिंह ने स्टाफ से बातचीत कर रक्त की व्यवस्था कराई।

रात में दो यूनिट ब्लड चढ़ाया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। रात लगभग एक बजे सांस लेने में तकलीफ बढ़ी, वेंटिलेटर लगाया गया, लेकिन करीब दो बजे हालत इतनी बिगड़ गई कि नाबालिग ने दम तोड़ दिया। मौत के वक्त उसके माता-पिता वहीं मौजूद थे।

पीड़िता के पिता का दर्द भरा बयान सुनकर कोई भी विचलित हो जाए। उन्होंने कहा, “मेरी बेटी कई दिनों तक स्ट्रेचर पर पड़ी रही। अगर समय पर भर्ती हो जाती, इलाज मिल जाता, तो शायद बच जाती। जिस दिन इलाज शुरू हुआ, उसी रात वह चली गई।

28 अक्टूबर की रात से मैं घर नहीं लौटा।” मौत से कुछ घंटे पहले गुरुवार शाम को लखनऊ पुलिस की एक इंस्पेक्टर और महिला उपनिरीक्षक ने अस्पताल पहुंचकर पीड़िता का बयान दर्ज किया था। पुलिस अधीक्षक दीक्षा शर्मा ने बताया कि पीड़िता को सर्जरी वार्ड में शिफ्ट कराया गया था, बेड और ब्लड की व्यवस्था भी सुनिश्चित की गई थी, लेकिन इलाज के बावजूद स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई। इंस्पेक्टर अजीत सिंह ने कहा कि पोस्टमॉर्टम लखनऊ में ही कराया जा रहा है और परिवार को सहयोग दिया जा रहा है।

इस घटना ने न केवल अपराधियों की क्रूरता बल्कि स्वास्थ्य प्रणाली की खामियों को भी उजागर कर दिया है। पुलिस ने एक नाबालिग आरोपी को हिरासत में ले लिया है, जबकि बाकी दो की तलाश जारी है।

मामले में दुष्कर्म, तेजाब हमला और हत्या के प्रयास की धाराओं में केस दर्ज है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी घटनाओं में त्वरित मेडिकल सहायता और आर्थिक मदद की व्यवस्था मजबूत होनी चाहिए, ताकि कोई निर्दोष जिंदगी न खोए।

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