उत्तर 24 परगना। पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के 2 एचआईवी पीड़ित एक दूसरे के साथ शादी के बंधन में बंधने वाले हैं। शिखा और समीर (बदले हुए नाम) दोनों ही पिछले काफी समय से एचआईवी से प्रभावित हैं और दोनों एक दूसरे से 2 साल पहले ही मिले थे।
शिखा अपने पति से संक्रमित हुई थी। दरअसल, सावित्री का परिवार गरीबी की अवस्था में था, जिस वक्त उसके माता-पिता को एक एजेंट ने एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति से उसकी शादी करने के लिए तैयार कर लिया था। हालांकि, शादी के कुछ महीनों बाद ही शिखा के पति की मौत हो गई। लेकिन इस वक्त तक शिखा एचआईवी संक्रमित हो चुकी थी। दूसरी तरफ, समीर भी जिले के गोपालनगर इलाके में रहता है। उसे जब पता चला कि वह एचआईवी पॉजिटिव है, तो उसने 4 साल पहले अपनी शादी रद्द कर दी थी। इसके बाद उसने यह फैसला किया था कि वह केवल एचआईवी पॉजिटिव लड़की से ही शादी करेगा, क्योंकि वह इस बीमारी को फैलाना नहीं चाहता था। सामाजिक भेदभाव झेल रहे शिखा और समीर ने एचआईवी प्रभावित लोगों की मदद करने के लिए बारासात में ‘एचआईवी नेटवर्क’ ज्वाइन कर लिया। यहां कुछ समय बाद ही दोनों के बीच अफेयर हो गया।
शिखा और समीर दोनों आपस में शादी करना चाहते हैं, इसके लिए उन्होंने अपनी संस्था को इसकी जानकारी दी है। हालांकि, दोनों के इस फैसले की तारीफ की जा रही है लेकिन शिखा और समीर आर्थिक और सामाजिक रूप से काफी कमजोर हैं। हावड़ा की एक एनजीओ ‘बानीपुर संस्थामुखी जन सहायक केंद्र’ इन दोनों की शादी का इंतजाम करने के लिए आगे आई है। अगले शुक्रवार 9 दिसंबर को दोनों की शादी होगी जिसमें लगभग 200 मेहमानों को बुलाया गया है। इस शादी के बंधन में जिले के डीएम, सीएमओ और एसपी भी शामिल होंगे। एनजीओ के प्रमुख इंद्रजीत पोद्दार ने कहा, ‘हमने काफी बड़े स्तर पर इंतजाम किया है ताकि लोगों को यह बताया जा सके कि एड्स के रोगी अछूत नहीं होते हैं और हमें उनको अकेला नहीं छोड़ना चाहिए।’
डॉक्टरों का कहना है कि दोनों सामान्य रूप से अपनी सेक्स लाइफ एन्जॉय करने के अलावा बच्चा भी पैदा कर सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सही दवाओं के जरिए दोनों एड्स प्रभावित मां-बाप स्वस्थ बच्चा पैदा कर सकते हैं। कलकत्ता स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन के प्रमुख विभूति साहा ने कहा, ‘अगर संक्रमित मां को सही एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी दी जाए तो संभव है भ्रूण वायरस से प्रभावित न हो। फिर भी किसी भी तरह के रिस्क से बचने के लिए नवजात बच्चे को 12 हफ्ते तक नेवीरैपिन दवा का कोर्स दिया जाता है। इसके बाद बच्चे के एड्स से प्रभावित होने के चांस 1 पर्सेंट से भी कम रह जाते हैं।’
समीर ने कहा, ‘अगर हमारी किस्मत में मरना ही लिखा है तो हम एक साथ मरेंगे।’ एचआईवी नेटवर्क की अध्यक्ष शुक्ला चक्रबर्ती ने कहा, ‘इस जिले में 2,500 से ज्यादा एड्स के मरीज हैं लेकिन वह कभी सामने नहीं आते हैं। आकड़ों के मुताबिक, पिछले एक साल में ऐसी 5 शादियां हुई हैं जिसमें जोड़े में से कोई एक एचआईवी प्रभावित है लेकिन उसने अपनी बीमारी को छिपा लिया।’