पहलगाम आतंकी हमले के ठीक एक दिन बाद, 23 अप्रैल 2025 को गलती से अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करने वाले सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवान पूर्णम शॉ को 21 दिन तक पाकिस्तान में बंधक बनाए रखने के बाद आखिरकार पाकिस्तान ने उन्हें भारत को सौंप दिया। ऑपरेशन सिंदूर में भारत के कड़े रुख और सैन्य कार्रवाई के बाद दबाव में आए पाकिस्तान ने पंजाब के वाघा-अटारी सीमा पर पूर्णम को रिहा किया, जहां उन्होंने अपने देश में कदम रखा।

घटना 23 अप्रैल की है, जब पंजाब के फिरोजपुर सेक्टर में 182वीं बीएसएफ बटालियन के कॉन्स्टेबल पूर्णम शॉ, जो भारत-पाक सीमा पर गेट नंबर 208/1 पर तैनात थे, अनजाने में भारतीय सीमा की बाड़ पार कर पाकिस्तानी क्षेत्र में चले गए।
पूर्णम, जो पश्चिम बंगाल के रिशरा के निवासी हैं, उस समय खेतों में फसल कटाई कर रहे भारतीय किसानों की सुरक्षा के लिए निगरानी कर रहे थे। गर्मी से बचने के लिए पेड़ की छांव में जाने की कोशिश के दौरान पाकिस्तानी रेंजर्स ने उन्हें हिरासत में ले लिया और उनकी सर्विस राइफल भी जब्त कर ली।
रिहाई में देरी क्यों?
पूर्णम की रिहाई के लिए बीएसएफ ने कई बार फ्लैग मीटिंग की मांग की, लेकिन पाकिस्तानी रेंजर्स ने जानबूझकर इसे नजरअंदाज किया। बीएसएफ के पूर्व अधिकारियों के अनुसार, गलती से सीमा पार करना कोई बड़ा अपराध नहीं है और ऐसी घटनाओं को अक्सर कुछ घंटों या एक फ्लैग मीटिंग में सुलझा लिया जाता है। हालांकि, 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत के सख्त रवैये और 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान को मिली करारी शिकस्त के कारण इस बार रिहाई में देरी हुई। सूत्रों के मुताबिक, पूर्णम की सुरक्षित वापसी के लिए कूटनीतिक चैनलों का सहारा लिया गया।
परिवार का संघर्ष
पूर्णम की पत्नी रजनी ने अपने पति की रिहाई के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और चंडीगढ़ में बीएसएफ अधिकारियों से मुलाकात की थी। उनकी बेटी ने भी इस मामले में समर्थन जुटाने की कोशिश की।
पाकिस्तान पर दबाव
ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकी ठिकानों को नष्ट कर पाकिस्तान को सख्त संदेश दिया था। इस सैन्य कार्रवाई के बाद पाकिस्तान बैकफुट पर आ गया और उसे पूर्णम शॉ को रिहा करने के लिए मजबूर होना पड़ा।