कार्यकाल के आखिरी दिन एससी-एसटी आयोग के अध्यक्ष ने मायावती पर लगाए ये आरोप

रिपोर्ट-सैय्यद अबू तलहा

लखनऊ – उत्तर प्रदेश के एससी एसटी आयोग के अध्यक्ष बृजलाल ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिन मीडिया से रूबरू होते हुए अपने कार्यकाल के दौरान किए गए कार्यों और उपलब्धियों के बारे में बताया.. इस दौरान आयोग के अध्यक्ष ने अपने कुछ वृतांत भी मीडिया कर्मियों से साझा किए। आपको बता दें कि बृजलाल पूर्व में उत्तर प्रदेश के डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस भी रहे हैं।

मौका sc-st आयोग के अध्यक्ष बृजलाल के कार्यकाल के आखिरी दिन का था तो आयोग के अध्यक्ष ने मीडिया कर्मियों को प्रेस वार्ता के लिए बुलाया इस दौरान बृजलाल ने अपने 1 साल 7 महीने के कार्यकाल मे किए गए कार्यों का ब्यौरा मीडिया के सामने रखा।

 

आयोग के अध्यक्ष ने बताया कि उनके कार्यकाल के दौरान पूर्व में लम्बित 757 मामले और उनके कार्यकाल में आए हुए 5979 थे जो कुल मिलाकर 6736 थे जिसमें से उन्होंने 6288 प्रकरणों का निस्तारण किया जिसमें से 4508 मामले उत्पीड़न के 1280 मामले राजस्व के एवं 500 विभागीय मामलों का निस्तारण किया गया उन्होंने बताया वर्तमान में आप 448 मामले लंबित हैं जो आने वाले आयोग के अध्यक्ष अपने कार्यकाल के दौरान निस्तारित करेंगे।

आयोग के अध्यक्ष ने यह भी जानकारी दी कि उनके कार्यकाल के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों को सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली आर्थिक सहायता को सक्षम प्राधिकारीओं द्वारा समय से प्रदान नहीं कराई जाती थी ऐसी शिकायतें भी आयोग को प्राप्त हो रही थी जिसका निस्तारण करके उन्होंने 244 प्रकरणों का समाधान किया और पीड़ित परिवारों को 3 करोड़ 4 लाख 56 हजार 372 रुपए की धनराशि आयोग के हस्तक्षेप द्वारा पीड़ितों को उपलब्ध कराई गई।

इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एससी एसटी आयोग के अध्यक्ष बृजलाल ने मायावती सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए बताया कि उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग अधिनियम 1995 के द्वारा उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन वर्ष 1995 में किया गया जितने मूल अधिनियम 1995 के अनुसार अध्यक्ष उपाध्यक्ष व सदस्यों के पदों पर अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्तियों को ही नियुक्त किए जाने का प्रावधान है ।

उन्नाव – गंगा मेला में हुआ बड़ा हादसा , आसमानी झूला टूटने से अफरा – तफरी…

लेकिन बहुजन समाजवादी पार्टी की सरकार द्वारा 2007 में उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग के अधिनियम मैं संशोधन करते हुए व्यवस्था की गई कि आयोग के अध्यक्ष उपाध्यक्ष सदस्यों के संबंध में जाति और लिंग के प्रतिबंधों को निकाल दिया जाए इसका फायदा उठाते हुए समाजवादी पार्टी की सरकार द्वारा अपने कार्यकाल में सहयोग में अध्यक्ष उपाध्यक्ष एवं 17 सदस्यों में से 12 सदस्यों की नियुक्तियां गैर अनुसूचित जाति के व्यक्तियों से करके इस आयोग को गैर दलित आयोग बना दिया गया था उन्होंने बसपा और सपा पर आरोप लगाते हुए कहा कि बीएसपी और एसपी की सरकारों द्वारा आयोग की संरचना में परिवर्तन करके अधिनियम की मूल भावना को ही समाप्त कर दिया गया था.।

 

LIVE TV