विकास का मॉडल कागजी आंकड़ों तक ही सीमित रह गया, योजनाएं धरातल पर तो कभी नजर ही नहीं आईं

REPORT – राकेश पंत

कोटद्वार । उत्तराखंड राज्य के आंदोलन और राज्य बनाने का मकसद था पर्वतीय लोगों की पहचान को संरक्षित करने, रोजगार, शिक्षा व स्वास्थ्य और विकास का मॉडल यहां के भौगोलिक परिवेश की तर्ज पर ढालने का ।

उत्तराखंड राज्य

विकास का मॉडल कागजी आंकड़ों तक ही सीमित रह गया सरकारी योजनाएं धरातल पर तो  उतरती है मगर अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों  के अनदेखी और दूरदृष्टि की कमी के   कारण जल्दी ही दम तोड़ने लगती है फिर इसका यह असर हुआ धीरे धीरे मूलभूत सुविधाएं भी खत्म होने लगी और उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों से गांव के गांव खाली  और खेत बंजर हो गए।

घरों कि खंडहरों में बदलतीं  तस्वीरें डरानेे लगी इन डरावनी तस्वीर को बदला जा सकता हैअगर जनप्रतिनिधि और अधिकारी इन योजनाओं का सही दिशा में उपयोग करें तो।

जी हां ऐसा ही कुछ कर दिखाया पौड़ी जनपद के   एकेश्वर ब्लॉक कि कगथून  गांव की महिला ग्राम प्रधान और ग्रामीणों जिन्होंने पानी और जल संरक्षण के महत्व को समझा 3 साल पहले जलागम विकास परियोजना से जुड़कर सबसे पहले अपने गांव के प्राकृतिक पानी के स्रोत का संरक्षण किया और सोलर पंप के माध्यम से इस पानी को घर घर पहुंचा दिया। पानी की उपलब्धता के कारण ग्रामीण खुश नजर आ रहे हैं।

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वहीं उत्तराखंड सरकार ने भी जल संरक्षण के कार्य को सराहा  जलागम विकास परियोजना के तहत  गांव कगथून को उत्तराखंड में तीसरा और पौड़ी जिले में पहला ग्रामीण उत्कृष्टता प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया।

वहीं ग्रामीणों का कहना है कि पानी की उपलब्धता के कारण आज गांव में खुशहाली आ गई है । आज सभी ग्रामीण गांव के आसपास बंजर पड़े खेतों में  सब्जियां उगा रहे हैं और  सब्जियों को बेचकर अपनी आय में वृद्धि कर रहे हैं। पानी जैसी मूलभूत सुविधा ना होने के कारण जो लोग गांव छोड़ शहरों के तरफ चले गए थे आज वह धीरे-धीरे गांव की तरफ लौटने लगे हैं।

 

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