
भारत की सर्वोच्च अदालत ने सुप्रीम कोर्ट से जब लोग पूरे सिस्टम से हार जाते हैं तो सुप्रीम कोर्ट ही इकलौती रौशनी की तरह दिखाई देता है। वहीं भारत के छोटे से छोटे शहर-गांव में बात-बात पर लोग कोर्ट के आसरे की बात करते हैं।
जहां लोग जानते हैं कि पुलिस थाना डीएम सीएम सब अगर किसी की मानते हैं तो वो है सुप्रीम कोर्ट. और उसी सुप्रीम कोर्ट का मुखिया अगर बेबस दिखाई दे तो क्या किया जाए। लेकिन चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया रंजन गोगोई ने बिहार के मुजफ्फरपुर ज़िले में एन्सेफ़ेलाइटिस से जुड़ी जनहित याचिका पर सुनवाई से मना कर दिया है।
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बतादें की याचिका में सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर, नर्स और अन्य स्टाफ़ के ख़ाली पदों को भरे जाने की बात थी। लेकिन याचिकाकर्ता चाहते थे कि सुप्रीम कोर्ट सरकार को इन पदों को भरने के दिशा निर्देश जारी कर दे।
वहीं याचिकाकर्ता का कहना है कि बिहार में 57 पर्सेंट डॉक्टरों की कमी है। जहां इसी वजह से बिहार में इस साल चमकी बुखार से मरने वालों की संख्या इतनी ज़्यादा रही है।
खबरों के मुताबिक कोर्ट पानी से लेकर रौशनी तक किस-किस चीज़ की कमी पर दिशा निर्देश जारी करेगा. पीठ ने ये भी कहा कि ‘जज, डॉक्टर, मंत्रियों, राज्यसभा सदस्यों के अलावा पानी और सूर्य की रौशनी की भी कमी है, तो किस-किस चीज़ की कमी पूरा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट दिशा निर्देश जारी करे। देखा जाये तो बिहार में डॉक्टरों की कमी है तो क्या करना चाहिए? क्या ये ख़ाली पद भरना शुरू कर दें? हम जजों के ख़ाली पद नहीं भर पा रहे हैं तो डॉक्टरों का क्या ही करें?’
लेकिन जस्टिस रंजन गोगोई ने जिस तरह से अपनी बेबसी ज़ाहिर की है वो हैरान करने वाला है। जब सुप्रीम कोर्ट ही जजों की नियुक्ति से जूझ रहा है तो बाक़ी जगह क्या हाल होगा।