
रिपोर्ट- अर्सलान समदी
लखनऊ। दारुल क़ज़ा के तर्ज पर उत्तर प्रदेश में हिन्दू कोर्ट का गठन हो गया है। हिन्दू महासभा ने इसको लेकर पहला हिन्दू कोर्ट का गठन मेरठ में किया है। इसको लेकर कानून के जानकार और मुस्लिम उलेमाओ ने साधी हुई प्रतिक्रिया दी है।
मुस्लिम स्कॉलर मौलाना सुफियान ने कहा कि, जब तक इस तरह के कोर्ट देश के संविधान के अंदर है उनका स्वागत है। उन्होंने कहा कि, दारुल क़ज़ा अदालत नही है बल्कि समुदाय के छोटे बड़े मसले आम सहमति से सॉल्व करते है, ये एक मैडिटेशन सेंटर के तौर देखा जाता है।
वही पेशे से वकील जफरयाब जिलानी ने इस तरह के कोर्ट को लेकर कहा कि किसी भी समुदाय को ये पूरा हक़ है कि वो अपने समुदाय के हक़ में कई कदम उठाए, ये कदम तबतक सबको कबूल होना चाहिए जबतक ये दूसरे समुदाय के हक़ में इंटरफीयर न करें और देश के संविधान के अंदर हो। दारुल क़ज़ा को सुप्रीम कोर्ट ने भी सिर्फ एक मैडिटेशन सेंटर के तौर पर मान्यता दी है।
वहीं इसको लेकर शिया मौलाना सैफब्बास का अपना मथ है उनके मुताबिक अब उनलोगों को जवाब देना चाहिये जो दारुल क़ज़ा के वक्त कहे रहे थे की मुस्लिम समुदाय अपनी अदालत चला रहा है, ये लोग देश के संविधान को नहीं मानते है।
गौरतलब है कि, उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में देश की पहली कथित ‘हिंदू अदालत’ स्थापित करने का दावा अखिल भारत हिंदू महासभा नामक संगठन ने किया है। शरिया अदालतों की तर्ज पर देश में हिंदू अदालतें स्थापित की जाएंगी ऐसा दावा हिन्दू माह सभा ने किया है। डॉ. पूजा शकुन पाण्डेय अदालत का पहला जज नियुक्त किया गया है। उनके मुताबिक, हिंदू अदालतों में जमीन विवाद, मकान और विवाह के मामले आपसी सहमति से सुलझाए जाएंगे।
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हिन्दू महासभा ने इस तरह के 15 कोर्ट पूरे सूबे में खोलने के एलान के साथ 2 अक्टूबर को उन नियमों को सार्वजनिक करने की बात कही जिनके अनुसार ‘हिंदू अदालत’ काम करेंगी। अखिल भारतीय हिंदू महासभा द्वारा हिंदू कोर्ट गठित करने का मामला हाईकोर्ट पहुंच गया है। मेरठ के अंकित सिंह ने हिंदू कोर्ट गठन पर आपत्ति दर्ज कराते हुए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर डीएम को नोटिस जारी कर 11 सितंबर तक जवाब मांगा है। जिसके बाद से देश मे एक नया विवाद सा खड़ा होता दिख रहा है।