
छतरपुर। मध्य प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के छतरपुर में अगर प्रशासन ग्रामीणों की शिकायत को गंभीरता से लेता तो आमरण अनशन पर बैठे बुजुर्ग किसान की जान बच सकती थी। ग्रामीणों ने किसान की गंभीर हालत को लेकर मौत से तीन दिन पहले जनसुनवाई में जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा था।
वहीं प्रशासन अनशन की बात मानने को तैयार ही नहीं है। सूत्रों ने बताया कि राजनगर तहसील के डुमरा गांव के किसानों को पिछले साल की सूखा राहत राशि वितरित करने के लिए 14 जुलाई को पंचायत भवन बुलाया गया था, मगर राहत राशि नहीं मिली और किसान गुस्से में आ गए। किसान मंगल सिह (65) पंचायत भवन के बाहर अनशन पर बैठ गए।
मृतक के साथ पहले दिन धरने पर रहे एक अन्य किसान गुलाब त्रिपाठी ने बताया कि मुआवजा वितरण के लिए सभी किसानों को 14 जुलाई को पंचायत भवन बुलाया गया था, मगर जब मुआवजा नहीं मिला तो मंगल सिह नाराज हो गए और उन्होंने कहा कि जब तक मुआवजा नहीं मिल जाता, वह वहां से नहीं उठेंगे।
वह लगातार अनशन पर बैठे रहे। हालत बिगड़ने पर 19 जुलाई को उन्हें अस्पताल ले जाया गया। चिकित्सकों ने उन्हें ग्वालियर रेफर कर दिया। परिवार के लोगों के पास ग्वालियर ले जाने लायक पैसा नहीं था। जब गांव वापस लाया गया, तो उनकी मौत हो गई।
मृतक मंगल सिह के नाती जगदीश यादव ने कहा, “दादा (मंगल सिह) ने 14 जुलाई से ही कुछ नहीं खाया था, जिसके कारण उनकी हालत बिगड़ती गई। आíथक स्थिति इस लायक नहीं थी कि इलाज के लिए हम उन्हें ग्वालियर ले जा सकें। हम उन्हें घर वापस ले आए, और 19 जुलाई की देर रात उनकी मौत हो गई।”
जगदीश ने बताया कि मौत के बाद गांव के लोगों ने 10 घंटे से ज्यादा समय तक गांव के पास का मार्ग जाम किए रखा, लेकिन प्रशासन का कोई नुमाइंदा मौके पर नहीं पहुंचा। हताश होकर 20 जुलाई को शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया।
नरेंद्र सिंह, जगदीश सहित अनेक ग्रामीणों के हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन 17 जुलाई को जिलाधिकारी को जनसुनवाई में दिया गया था, इस ज्ञापन में मंगल सिंह की गंभीर हालत का जिक्र किया गया था। उसके वाबजूद प्रशासन ने ग्रामीणों की बात पर भरोसा नहीं किया, और आखिरकार किसान की मौत हो गई।
इस सिलसिले में जब रविवार को जिलाधिकारी रमेश भंडारी से संपर्क किया, तो उन्होंने कहा कि संबंधित किसान ने अनशन नहीं किया था। इस मामले की जांच राजनगर के तहसीलदार को सौंपी गई है।
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ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन पूरे मामले को दबाने में लगा है। यही कारण है कि आंदोलन के दौरान कोई अधिकारी घटनास्थल पर नहीं पहुंचा, और मौत होने के बाद भी उसकी सुध नहीं ली गई। पोस्टमार्टम नहीं कराया, ताकि कोई तथ्य सामने न आ सके।
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गौरतलब है कि बुंदेलखंड बीते तीन सालों से सूखे की चपेट में है। बारिश पर्याप्त न होने से किसानों के खेत मैदान में बदल जाते हैं, बोया बीज अंकुरित नहीं हो पाता। सरकार दावा करती है कि किसानों को सूखा राहत राशि दी जा रही है, खेती को फायदे का धंधा बनाया जा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत सबके सामने है।
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