एक ऐसे व्यक्ति की कहानी जिसकी मां की एक सीख ने उसे बना दिया प्रख्यात दार्शनिक

दार्शनिक गुरजिएफ ने अपनी आत्मकथा में माता द्वारा दी गई एक बहुमूल्य संपदा का उल्लेख किया है, जिसके कारण वे अनेक भटकावों से बचे और आनंद भरे अनेकों अवसर पा सके।

प्रख्यात दार्शनिक

लिखा है कि मेरी माता ने मरते समय कहा, “किसी पर क्रोध आए तो उसकी अभिव्यक्ति चौबीस घंटे से पूर्व न करना।” मैंने वह बात गाँठ बाँध ली और आजीवन उसको निवाहा भी।

ऐसे अनेकों प्रसंग आए, जिनमें मुझे बहुत क्रोध आया था, पर बाद में पता चला था कि तथ्य कम और भ्रम अधिक था।

क्रोध के परिणामों पर विचार करने का अवसर मिलते रहने से उसे कार्यान्वित करने की नौबत न आई और जो शत्रु लगते थे, वे आजीवन मित्र बने रहे।

माता की यह सीख ही मुझे इस स्थिति तक पहुँचा पाई, यह कहना अतिशयोक्ति न होगी।

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