
देहरादून। लगातार त्रासदी का दंस झेल रहे उत्तराखंड को दर्द से उबारने के लिए देश के जाने माने वाले जल पुरुष राजेंद्र प्रसाद ने सरकार को आगाह किया है। उन्होंने कहा है कि हिमालय इस समय बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है। जिसकी वजह हिमालय में जंगलों और हरियाली का कम होना है। जोकि आने वाले समय में किसी खतरे से कम नहीं है।
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में अंधाधुंध निर्माण कार्यों और नदियों में बन रहे बांधों की वजह से हिमालय खतरे में है। यह कहना है कि प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और मैगसेसे पुरस्कार विजेता और वाटरमैन के नाम से विख्यात राजेंद्र सिंह का।
देहरादून स्थित वाडिया हिमालयन भूविज्ञान संस्थान में एक गोष्ठी में भाग लेने आए जल पुरुष ने कहा कि हिमालय इस समय बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है। जिसकी वजह हिमालय में जंगलों और हरियाली का कम होना है और यह भविष्य के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
उत्तराखंड में इस समय चारधाम के लिए ऑल वेदर रोड का बड़े पैमाने पर काम चल रहा है। इसके साथ ही राज्य में कई बांध निर्माणाधीन हैं। लेकिन इस निर्माण कार्य में न नदियों का ख्याल रखा जा रहा है, न जंगलों और न ही पहाड़ों का। जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने इसे हिमालय के लिए ख़तरनाक बताया है।
राजेंद्र सिंह ने कहा कि भारत में पानी का सबसे बड़ा स्रोत हिमालय है. जो आज संकट में है। विकास के नाम पर अंधाधुंध निर्माण पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि हिमालय में बड़े पैनामे पर टनल बनाई जा रही हैं. और पहाड़ खोदकर निकाली गई मिट्टी नदियों के किनारे डाली जा रही है।
यह मिट्टी बरसात में बहकर नदियों में जाती हैं और इस वजह से नदियों में बाढ़ आने का खतरा बढ़ जाता है।
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लम्बे समय से नदियों के पुनर्जीवन के लिए दुनिया भर में पहचाने वाले राजेंद्र सिंह ने कहा कि किसी भी सरकार ने रिवर राइट की तरफ ध्यान नहीं दिया है। नदियों के भी अधिकार होते हैं। जैसे ह्यूमन राइट होता है उसी तरह रिवर राइट होता है।
हिमालय की नदियों के बारे में उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती नदियों की अविरलता को बनाए रखना है। सबसे ज़्यादा बाद गंगा नदी की अविरलता को लेकर की जाती है लेकिन इसमें सबसे बड़े बाधक इस पर बनने वाले बांध हैं।
राजेंद्र सिंह ने कहा कि हिमालय में असंतुलन बढ़ रहा है और इसे रोकना ज़रूरी है। जलपुरुष के अनुसार इस असंतुलन को रोकने के लिए तीन काम करने होंगे। सबसे पहले हिमालय क्षेत्रों में हो रहे मिट्टी के कटाव को रोकना चाहिए इसके लिए सरकारों को एक ठोस नीति बनानी होगी।
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उन्होंने कहा कि हिमालय सबसे युवा पहाड़ है और उसका स्वभाव भी वैसा ही है। उससे छेड़छाड़ करोगे तो वह तुरंत इस पर प्रतिक्रिया देगा। खुद बचे रहना है तो हिमालय को भी बचाने के लिए काम करना होगा।
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