
कहा जाता है कि जिंदगी और मौत कभी बताकर नहीं आती। पर कभी-कभी जिंदगी लोगों के साथ ऐसा खेल खेलती है कि वो जिंदगी और मौत के दोराहे पर आ खड़े हो जाते हैं। ऐसा वक्त इंसान के लिए इम्तिहान की घड़ी होता है। ये हम पर निर्भर करता है कि हम खुश रहना चाहते हैं या फिर दुखी। जो लोग हार मान लेते हैं उनके लिए जिंदगी के कोई मायने ही नहीं रह जाते, पर जिनमें जीने की ललक होती है वो अपनी मंजिल खुद ही तलाश लेते हैं। इसी बात पर एक कहावत मशहूर है – मुसीबत सब पर आती है, कोई बिखर जाता है, तो कोई निखर जाता है। मुसीबत में निखरने का एक बढ़िया उदाहरण है, हैदराबाद की उद्यमी रुचिका शर्मा की कहानी।
रुचिका शर्मा ने नहीं मानी हार
ज़िंदगी की सबसे बड़ी मुसीबत आने से पहले रुचिका शर्मा की ज़िंदगी बहुत खूबसूरत थी। हँसते-खेलते, तरक्की करते, छोटे-बड़े सपनों को साकार करते रुचिका आगे बढ़ रही थीं । ज़िंदगी में खुशियां भी बहुत थी। कम उम्र में ही रुचिका ने “शेफ” के रूप में खूब नाम कमा लिया था। उन दिनों हैदराबाद में पुरुष शेफ तो बहुत थे, लेकिन महिला शेफ बहुत ही कम। रुचिका की लोकप्रियता इतनी ज्यादा थी कि साल 2004 में ही वो 9 टीवी चैनलों पर कुकरी शो होस्ट करती थीं । आलम ये था कि उनकी सहेलियां कहतीं – “हर चैनल पर रूचि दिख रही। चैनल बदलो तो भी रूचि।”
सहेलियां प्यार से उन्हें रूचि बुलाती थीं। नए-नए पकवान बनाकर दूसरों का दिल जीतने की चाह रखने वाले लोग रुचिका के कुकरी शो का बेसब्री से इंतज़ार करते थे। एक दिन माँ ने ऐसे ही रुचिका से कह दिया था – तुम बहुत पॉपुलर हो रही हो। थोड़े शोज़ बंद कर दो वरना नज़र लग जाएगी।
ऐसी खुशनुमा ज़िंदगी एक दिन अचानक बदल गयी। रुचिका शर्मा एक सड़क हादसे का शिकार हो गईं। हादसा इतना भयानक था कि रुचिका का चेहरा बिगड़ गया। हाथ-पाँव में कई जगह हड्डियां टूटीं। शरीर के कई हिस्सों में गहरे घाव हुए। हकीकत तो ये थीं कि वे बस अपनी जान बचा पायी थीं। रुचिका को वो हादसा कैसे हुआ बिलकुल याद नहीं है। उन्हें इतना याद है कि एक शख्स ने ज़ख़्मी हालत में उन्हें अस्पताल पहुँचाया था और वो बच गयीं। इस एक घटना ने रुचिका की ज़िंदगी पूरी तरह बदल थी। खुशी, आशा, उम्मीदें, सुनहरे सपने सब एक झटके में गायब हो गए और ज़िंदगी को उदासी, मायूसी, निराशा, हताशा, दुःख और पीड़ा ने घेर लिया। हँसते-कूदते हर काम करने वालीं रुचिका की हालत इतनी खराब हो गयी कि चार कदम चलना भी उनके लिए पहाड़ चढ़ने जैसा मुश्किल हो गया। जगह-जगह जाकर लोगों को एक से बढ़कर एक रुचिकर पकवान बनाना सिखाने वाली रुचिका की ज़िंदगी बेड और व्हील चेयर तक सिमट गयी। ये हादसा उस समय हुआ था, जब रुचिका इंडियन स्कूल ऑफ़ बिज़नेस से कामयाब उद्यमी बनने के फॉर्मूले सीख रही थीं। उन्हें इस नामचीन शिक्षा संस्थान में गोल्ड़मैन सच्स कोर्स में दाखिल मिल गया था। ये एक स्कॉलरशिप प्रोग्राम था। इस प्रोग्राम में फर्स्ट टर्म के ख़त्म होने पर विद्यार्थियों को मेंटरशिप के लिए बीस दिन का समय दिया गया था। इसी दौरान जब एक दिन रुचिका अपने कुछ रिश्तेदारों को हैदराबाद एयरपोर्ट पर रिसीव कर वापस लौट रही थीं, तब आउटर रिंग रोड पर ये हादसा हुआ था।
जीवन के उस सबसे कठोर और चुनौती भरे दिनों के बारे में बताते हुए रुचिका शर्मा ने कहा,”मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेरे साथ ऐसा भी हो सकता है। उस हादसे ने मुझे पूरी तरह से हिलाकर रख दिया था। मुझे लगा कि मैं कभी भी इससे उभर नहीं पाऊँगी।” उस सड़क हादसे का रुचिका के मन-मस्तिष्क पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा था कि वे डिप्रेशन में चली गयी थीं। उनका मूड मिनट-मिनट पर बदलता। उनके मूड स्विंग की समस्या से घरवाले और सभी दोस्त परेशान रहने लगे थे।
रुचिका ने योर स्टोरी से बातचीत में बताया कि वह हिम्मत हार चूँकि थीं, लेकिन उनकी माँ ने हिम्मत नहीं हारी। माँ ने अपनी कोशिश जारी रखी। माँ रुचिका को प्रेरणा देने वाली कहानियाँ सुनाती। उम्मीद और उत्साह जगाने वाली बातें कहती। माँ ने रुचिका को मैडिटेशन की किताबें भी लाकर दीं ताकि उन्हें पढ़कर वे अपना ध्यान सिर्फ और सिर्फ स्वास्थ-लाभ पर लगा सकें। माँ ने रुचिका को आध्यात्म से भी जोड़ा। धीरे-धीरे ही सही माँ और रुचिका के दूसरे शुभ-चिंतकों की कोशिशें कामयाब होने लगी। सड़क हादसे से हुए ज़ख्मों से उबरने के लिए रुचिका को कई सारे ऑपेरशन करवाने पड़े। रुचिका के पाँव में पांच इंच का स्क्रू भी इम्प्लांट करना पड़ा। चूँकि हादसे में चेहरा भी काफी बिगड़ गया था, रुचिका ने वही पुराना साफ़-सुथरा और सुन्दर चेहरा पाने ने लिए फैशियल योगा का सहारा लिया। योगा से रुचिका को खूब मदद मिली। गहरे ज़ख्मों, गन्दी खरोशों से दागदार हुए चहरे पर योगा की वजह से रौनक और ताज़गी फिर से लौट आयी। मेहनत रंग लाई। माँ, दूसरे परिवारवालों, शुभचिंतकों, दोस्तों और खुद की मेहनत रंग लाई थी। आखिर रुचिका ने कामयाबी हासिल कर ही ली। व्हील चेयर से मुक्ति मिली। ज़ख्म सूख गए। दर्द दूर हुआ। रंग-रूप बदला। चेहरा निखरा और ज़िन्दगी ने फिर से करवट ली और फिर से नयी उम्मीदें जगी। सुनहरे सपने संजोए जाने लगे।
हादसे से तन-मन को हुए नुकसान से उभरने के बाद रुचिका ने फिर से तरक्की की राह पकड़ी। सपनों को साकार करने में जी-जान लगा दी। खास बात तो ये भी कि रुचिका ने उन बड़े सपनों को भी साकार किया, जिन्हें पूरा करने से उनके घरवालों ने ही उन्हें कभी रोका था। रुचिका अपने पढ़ाई के दिनों से ही मॉडल बनना चाहती थीं। उनका सपना सौंदर्य प्रतियोगियताओं में हिस्सा लेना और अपने हुनर से उन्हें जीतना था। चूँकि परिवार में पहले कभी भी ऐसा कुछ नहीं हुआ था और परिवार परम्परावादी था। रुचिका का सपना पूरा नहीं हो पाया था लेकिन , हादसे से उभरने के बाद रुचिका ने मन बना लिया था कि वे सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगी। और, वो दिन आ भी गया जब उनका सपना पूरा हुआ। रुचिका शर्मा एक दिन इंटरनेट ब्राउज कर रही थीं तब उन्होंने “मिसेस इंडिया” प्रतियोगिता के बारे में पढ़ा। फ़ौरन उन्होंने अपना नाम और आवदेन भेज दिया। वे सेलेक्ट भी हो गयीं। रुचिका ने प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। वे प्रतियोगिता का सबसे बड़ा खिताब तो जीत नहीं पाईं, लेकिन उन्हें उनके हुनर और उनकी ख़ूबसूरती के लिए मिसेस इंडिया -पॉपुलर के खिताब से नवाज़ा गया। ये खिताब उनके जीवन में नयी खुशियां और उम्मीदें लेकर आया। उन्होंने इसके बाद भी कुछ सौंदर्य प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और सभी को खूब प्रभावित किया। रुचिका मिसेस इंडिया हैदराबाद इंटरनेशनल और मिसेस साउथ एशिया का खिताब भी अपने नाम कर चुकी हैं।