जब Mulayam Singh Yadav पर चली थीं 9 गोलियां, चलाने वाला कौन था?

आज गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में 82 वर्ष की उम्र में मुलायम सिंह यादव ( Mulayam Singh Yadav ) का निधन हो गया है। लेकिन, उनसे जुड़े कई किस्से राजनीति के पटल पर हमेशा याद किए जाएंगे। साल 1984 में एक ऐसी ही घटना हुई, जब उनके ऊपर एक के बाद एक 9 गोलियां चलीं।

4 मार्च 1984, दिन ढल रहा था। मुलायम सिंह यादव इटावा में एक रैली को संबोधित करने के पश्चात लगभग शाम 5 बजे अपने एक मित्र से मिलने महिखेड़ा गांव पहुंचे। उनके दोस्त से मुलाकात के बाद मुलायम करीब रात 9.30 बजे मैनपुरी के लिए रवाना हुए। अभी वे महिखेड़ा से करीब एक किलोमीटर की दूरी ही तय कर पाए थे कि गोलियों की आवाज आने लगी। कुछ देर तक तो किसी को कुछ समझ ही नहीं आया. लेकिन, मुलायम सिंह की गाड़ी चला रहा ड्राइवर ने देखा कि उसकी गाड़ी के आगे चल रहे बाइक सवार दो लोग गिर गए हैं और उसकी गाड़ी में भी आग लग गई है। तब तक सुरक्षाकर्मी भी समझ गए कि हमलावरों के निशाने पर मुलयाम सिंह यादव ही हैं।

मुलायम सिंह पर क्यों चली थीं गोलियां? कौन थे वे लोग?

देश की आज़ादी के करीब 3 दशकों तक केंद्र और राज्यों की सत्ता में कांग्रेस का ही बोलबाला रहा। लेकिन, इसके बाद से कांग्रेस को चुनौतियां मिलनी शुरू हो गई थीं। कई अलग-अलग पार्टियां और लोग कांग्रेस के लिए चुनौती बन गए थे। चुनौतियां देने वालों में एक नाम था मुलायम सिंह यादव, जो दिल्ली से दूर उत्तर प्रदेश के इटावा से कांग्रेस को चुनौती दे रहा था। साल 1967 में लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से पहली बार विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे मुलायम तेजी से राजनीति में आगे बढ़ रहे थे। राजनीति में मुलायम का यही बढ़ता कद उनके विरोधियों को पसंद नहीं आ रहा था।
नतीजा उन्हें मारने की पूरी साजिश रची गई। साजिश के तहत कार में बैठे मुलायम पर एक के बाद एक, 9 गोलियां दागी गईं। इन गोलियों की गड़गड़ाहट से पूरे इलाके में हल्ला मच गया कि मुलायम मारे गए। दरअसल करीब आधे घंटे तक दोनों तरफ से गोलियां चलती रहीं। जब हमलावर शांत हुए तो मुलायम के सुरक्षाकर्मी घेरा बनाकर एक जीप में उन्हें नजदीकी कुर्रा पुलिस थाने तक ले गए। इस हमले में उनकी कार के आगे मोटर साइकिल से चल रहे छोटेलाल नामक व्यक्ति की घटना स्थल पर ही मौत हो गई और नेत्रपाल सिंह नामक एक अन्य युवक गंभीर रूप से घायल हो गया. मुलायम सिंह यादव पर हमले के बाद सियासी घमासान मच गया था. उन्होंने इस हमले के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया था. मुलायम सिंह ने बिना किसी का नाम कहा था कि ‘ये उनकी हत्या करने की सोची-समझी साजिश थी और उन्हें भगवान ने ही बचाया है।

इस हमले में मुलायम सिंह की गाड़ी पर हमलावरों की कुल 9 गोलियां लगी थीं। ये गोलियां गाड़ी में उसी तरफ मारी गई थीं, जिधर मुलायम बैठे थे। यानी हमलावरों को मुलायम की लोकेशन से लेकर सीटिंग पोजिशन सबकुछ पता था। अखिलेश यादव की जीवनी विंडस ऑफ चेंज लिखने वाली वरिष्ठ पत्रकार सुनिता एरॉन लिखती हैं कि मुलायम सिंह यादव को अपने ऊपर हमले का अंदेशा पहले से ही था. मुलायम ने अपने सुरक्षाकर्मियों को कह रखा था कि हमले की स्थिति में वे चिल्लाने लगें- नेताजी मारे गए. नेताजी मारे गए। उस दिन जब उन पर हमला हुआ तो सुरक्षाकर्मियों ने ऐसा ही किया. जिससे हमलावरों को लगा कि मुलायम सिंह यादव सही में मारे गए हैं और वे घटनास्थल छोड़ भाग गए। इसके बाद मुलायम के सुरक्षाकर्मी घेरा बनाकर एक जीप में उन्हें नजदीकी कुर्रा पुलिस थाने ले गए. इस तरह से मुलायम सिंह की जान बच पाई थी।

इसके बाद भी मुलायम सिंह के तेवर विरोधियों के प्रति नरम नहीं हुए…उन्होंने अपने तेवर को और धार देना शुरू कर दिया। 1989 से 1992 तक चले राजनीतिक झंझावातों से मुलायम उलझन में थे। मंडल और मंदिर मामलों में उन्होंने सख्त रुख अपनाया था। साथ ही नित नई साजिशें रची जा रही थीं। मुलायम ने अपना अलग रास्ता ढूंढ़ने का फैसला किया। मुलायम के पास तीन सूरमाओं के साथ काम करने की ट्रेनिंग थी. उन्होंने लोहिया की सोशलिस्ट पॉलिटिक्स, चरण सिंह की किसान पॉलिटिक्स और वी पी सिंह की मंडल पॉलिटिक्स को करीब से देखा था. उनके पास मौका था कि तीनों विचारों को साथ लेकर राजनीति शुरू करें।

उस समय वो देवीलाल, चंद्रशेखर और वीपी सिंह जैसे बड़े नेताओं से नाराज चल रहे थे। वे दारुलशफा स्थित अपने मित्र भगवती सिंह के विधायक आवास पर जाकर साथियों के साथ लंबी बैठकें करते और भविष्य की रूपरेखा तैयार करते। साथियों ने डराया कि अकेले पार्टी बनाना आसान नहीं है। बन भी गई तो चलाना आसान नहीं होगा. लेकिन, मुलायम इस बात पर पूरी तरह से अडिग थे।
उनका कहना था कि भीड़ और पैसा जुटाकर उन्हें हम देते हैं। फिर वे हमें बताते हैं कि क्या करना है, क्या बोलना है। हम अपना रास्ता खुद बनाएंगे। आखिरकार सितंबर 1992 में Mulayam Singh Yadav ने सजपा से नाता तोड़ ही दिया और चार अक्टूबर को लखनऊ में उन्होंने समाजवादी पार्टी बनाने की घोषणा कर दी। चार और पांच नवंबर को बेगम हजरत महल पार्क में उन्होंने पार्टी का पहला राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित किया। मुलायम समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष, जनेश्वर मिश्र उपाध्यक्ष, कपिल देव सिंह और मोहम्मद आजम खान पार्टी के महामंत्री बने और मोहन सिंह को प्रवक्ता नियुक्त किया गया।

उत्तर प्रदेश की राजनीति के इन 30 सालों में Mulayam Singh Yadav की पार्टी ने तीन बार सरकार बनाई और दिल्ली तक अपनी धाक भी दिखाई। आज उनके निधन पर पूरी पार्टी में गम का माहौल है, आगे सपा की जिम्मेदारी उनके बेटे अखिलेश यादव पर है ।
आपको बता दें हाल ही में हुए राष्ट्रीय अधीवेशन में समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष अखिलेश यादव को चुना गया है।

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