
नई दिल्ली। 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। आज के दिन स्पैरो यानी की गौरैया दिवस पर इस प्रजाति को याद किया जाता है। इंसानों के सबसे ज्यादा करीब रहने वाली घरेलु गौरैया धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। धीरे-धीरे गौरैया की चहचहाट कम होती जा रही है। गौरैया एक ऐसी चिड़िया है जिसकी चहक और पंखों की फड़फड़ाहट हमारे जहन में रोजमर्रा की घरेलू आवाजों की तरह होती थी।
मानव जहां-जहां गया गौरैया उसका हम सफर बन कर उसके साथ गई। शहरी हिस्सों में इसकी छह प्रजातियां पाई जाती हैं, जिसमें हाउस स्पैरो, स्पेनिश, सिंउ स्पैरो, रसेट, डेड और टी स्पैरो शामिल हैं। यह यूरोप, एशिया के साथ अफ्रीका, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया और अमेरिका के अधिकतर हिस्सों में मिलती है।
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गौरैया एक ऐसी पक्षी है जो इंसानों से दूर नहीं बल्कि इंसानों के साथ रहना पसंद करती है। वहीं अगर बात करें उनकी संख्या की तो 10 बर्षों की तुलना में आज गैरैयों में 60 से 70 प्रतिशत की कमी आई है। इनके विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण है हमारा शहरीकरण हो जाना।
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खुले आंगन में चहचहाने वाली गौरैया अब बंद दरवाजों की वजह से अपनी दस्तक नहीं दे पाती। बता दें कि गौरैया एक छोटी सी घरेलू पक्षी है जो इंसानों के साथ बैठकर उन्हीं के थाली से खाना खा पसंद करती है। यह यूरोप और एशिया में सामान्य रूप से पाई जाती है। नर गौरैया की पहचान उनके गले के पास बने काले धब्बे से की जाती है, जबकि मादा की पहचान उनके सिर और गले के भूरे रंग से की जाती है। इन्हें अधिकतर झुंडों में देखा जाता है।