तुलसी और उनकी पूजा से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य जानकर हो जाएंगे धन्य
आज देवोत्थान एकादशी है. आज के दिन ही तुलसी का विवाह शालिग्राम से हुआ था. तुलसी का महत्व धार्मिक होने के साथ आयुर्वेदिक भी है. इसके सेवन मात्र से ही लोगों के मन पवित्र हो जाते हैं. तुलसी के कई फायदे हैं, जिनकी वजह से कई रोग दूर हो जाते हैं. साथ शरीर भी फिट रहता है. तुलसी संजीवनी बूटी के समान है. तुलसी के सेवन से आलस्य दूर हो जाता है. शरीर में दिन भर स्फूर्ति बनी रहती है.
तुलसी को हरिप्रिया भी कहा जाता है अर्थात् जो हरि यानी भगवान विष्णु को प्रिय है. ऐसा कहा जाता है कि औषधि के रूप में तुलसी की उत्पत्ति से भगवान विष्णु का संताप दूर हुआ था. इसलिए तुलसी को यह नाम दिया गया है.
ऐसा कहा जाता है कि विष्णु पूजा के लिए कोई भी नैवेद्य न हो, कोई भी विधान न किया गया हो, और केवल तुलसी का एक पत्ता भी अर्पित कर दिया जाये तो पूजा का सम्पूर्ण फल प्राप्त हो जाता है.
समुद्र-मंथन के समय जो अमृत धरती पर छलका, उसी से तुलसी की उत्पत्ति हुई थी. इस पौधे के हर हिस्से में अमृत समान गुण हैं.
भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों और स्वरूपों की पूजा में तुलसी का नैवेद्य नहीं होने पर पूजा अधूरी मानी जाती है.
तुलसी के पौधे की ‘जड़’ में सभी तीर्थ, ‘मध्य भाग (तना)’ में सभी देवी-देवता और ‘ऊपरी शाखाओं’ में चारों वेद स्थित हैं. इस मान्यता के अनुसार, तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करना पापनाशक और इसके पूजन को मोक्षदायक कहा गया है.
तुलसी का एक भी पौधा होता है, वहां त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) निवास करते हैं. तुलसी की सेवा करने से व्यक्ति के सम्पूर्ण पाप भी नष्ट हो जाते हैं.
जिस पूजा और यज्ञ के प्रसाद में तुलसी-दल नहीं होता है, उस भोग को भगवान स्वीकार नहीं करते हैं.
मृत शरीर का दहन तुलसी की लकड़ी की अग्नि से किया जाता है, वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं अर्थात उन्हें जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा मिल जाता है.
मृत शैय्या पर पड़े व्यक्ति को तुलसी दलयुक्त जल सेवन कराया जाता है, क्योंकि हिन्दू विधान में तुलसी की शुद्धता सर्वोपरि है. इससे व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है.
रामचरिमानस में वर्णन है: ‘नामायुध अंकित गृह शोभा वरिन न जाई. नव तुलसी के वृन्द तहंदेखि हरषि कपिराई.’ जब हनुमान लंका भ्रमण कर रहे थे, तो लंका में विभीषण के घर तुलसी का पौधा देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए थे. इसी वजह से हनुमानजी ने सिर्फ विभीषण के महल को छोड़कर पूरी लंका जला डाली थी.