34 वर्षों तक मां की आंखों में इन्साफ़ मिलने का इंतजार, 84 के दंगा पीड़ित का दर्द

दिल्ली दंगों की आग में मेरे पिता, भाई व मामा के बेटे झुलस गए, सदा के लिए खामोश हो गए। मां ने जलती हुईं चिताएं देखी थीं। तीन दिन तक दिल्ली की सड़कों पर भटकती रहीं। उस समय उनकी आंखों में बेबसी के आंसू थे, जो बाद में प्रतिशोध के शोलों में परिवर्तित हो गए। आज अदालत का फैसला आने के बाद सुकून मिला है।’ 1984 के दंगे के दौरान की दिल दहला देने वाली घटना को दोहराकर जगदीश कौर की बेटी हरविंदर कौर भावुक हो गईं।

दिल्ली दंगों में दोषी करार दिए गए सज्जन कुमार मामले में जगदीश कौर मुख्य गवाह थीं। सज्जन को उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के बाद हरविंदर कौर ने कहा, आज मां की तपस्या सार्थक हो गई। हम तो जीते-जी मर चुके थे। 1 नवंबर 1984 को दंगाइयों ने कैंट एरिया स्थित हमारे घर में घुसकर मेरे 18 वर्षीय भाई गुरप्रीत सिंह, पिता केहरसिंह व मामा के चार बेटों को जलाकर मार डाला। मां ने मुझे, मेरी बहनों हरजीत व गुरजीत तथा भाई गुरदीप सिंह को पड़ोसी के यहां भेज दिया था।

हरविंदर कौर  बोलीं, पड़ोसी ने गुरदीप सिंह के केश काट दिए ताकि दंगाई सिख समझकर उसकी हत्या न कर दें, पर देर शाम जब दंगों की आग भड़की तो हमें पड़ोसी ने घर भेज दिया। हरविंदर बताती हैं, मुझे याद है कि घर के बाहर खून बिखरा हुआ था। छोटा भाई गुरदीप बार-बार पूछ रहा था कि यह खून किसका है। अंदर भाइयों व पिता की लाशें पड़ी थीं। सड़कों पर अफरातफरी मची थी।

हरविंदर बताती हैं, मां जगदीश कौर तीन दिन तक सड़कों पर भटकती रहीं। वह कभी थाने जातीं तो कभी आर्मी हेडक्वॉर्टर, पर स्थिति इतनी तनावपूर्ण थी कि कहीं से कोई मदद नहीं मिल पाई। अंतत: तीन दिन बाद वह घर पहुंचीं और अपनों की लाशों पर रजाइयां, कंबल व घर की खिड़कियां रखकर अंतिम संस्कार किया। मां ने बहुत दर्द देखा, सहन किया। आज सज्जन कुमार को सजा की घोषणा के बाद मां से बात की तो उनकी बातों से आत्मविश्वास झलक रहा था।

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) द्वारा संचालित स्कूल में अध्यापिका के रूप में कार्यरत जगदीश कौर की बेटी हरविंदर कौर ने कहा कि जुल्मी को सजा मिलनी ही चाहिए थी। मुद्दा सिख या हिंदू का नहीं, ऐसा दर्द किसी को न मिले और कोई ऐसा दुस्साहस करने का सोच भी न सके, इसलिए कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए। मां ने दिल्ली जाने से पहले मुझे फोन कर कहा था कि बेटी तुम ससुराल से घर आ जाना। घर में बहू व पोती अकेली हैं, उनका ख्याल रखना।

हरविंदर कौर के अनुसार मां को फोन पर धमकियां मिलती थीं। इस केस से हटने का दबाव बनाया जाता। मैंने मां से कहा था कि जो बीत गया, उसे भूल जाओ। अब जो है उसे संभाल लो, पर मां ने हिम्मत नहीं हारी। मुझे याद है कि दिल्ली दंगों के बाद मां ने हमें गुरदासपुर स्थित अपने मायके घर छोड़ दिया और खुद श्री हरिमंदिर साहिब की शरण में चली गईं। वह गहरे सदमे में थीं।

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1 नवंबर 1984 को दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों में पति व पुत्र को खोने वाली जगदीश कौर सोमवार को दिल्ली में थीं। कोर्ट का फैसला आने के बाद दैनिक जागरण से बातचीत में उन्होंने कहा कि वो सज्जन नहीं दुर्जन था, जिसके कहने पर लाशों के ढेर बिछा दिए गए। खून का दरिया बहा और सब कुछ खत्म हो गया। सज्जन कुमार दंगाइयों का नेतृत्व कर रहा था। उसे सजा दिलाने के लिए उन्होंने 34 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी।

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