पुणे हिंसा में क्यों जला महाराष्ट्र? हकीकत से रूबरू कराएगी 200 साल पुरानी ये कहानी

पुणे में शुरू हुई हिंसानई दिल्ली। महाराष्ट्र के पुणे में शुरू हुई हिंसा की आंच धीरे-धीरे पूरे देश में फ़ैल रही है। वहीं सियासी गलियारे में भी इसका सीधा असर होता दिखाई दे रहा है। मामले में विपक्ष को सत्ता पक्ष को घसीटने का मौका जो मिल गया। देखते ही देखते वास्तविक हिंसा तो दूर हो गई और आरोप-प्रत्यारोप और कटाक्ष की जंग शुरू हो गई। लेकिन सवाल इस बात का है कि हिंसा शुरू क्यों हुई और आखिर क्या है इसके पीछे की हकीकत।

जानकारों के मुताबिक़ इस पूरे मामले की कड़ी उस दौर से जुडी हुई है। जब यहाँ पेशवाओं का बोलबाला था और उनके द्वारा दलित उत्पीड़न हुआ करता था।

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असल में एक जनवरी सन 1818 में कोरेगांव में भीमा नदी के तट पर पेशवाओं और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ था। जिसमें अंग्रेजों की छोटी सी टुकड़ी ने 2800 सैनिकों वाले पेशवाओं को शिकस्त दे दी थी।

खास बात ये है कि यह देश का इकलौता युद्ध है, जिसमें अंगेजों की जीत का जश्न मनाया जाता है और उसकी वजह है अंग्रेजों की ओर से लड़ने वाले महार सैनिक।

कहा जाता है कि अंग्रेजों की सेना में उस समय ज्यादातर दलित ही थे, जिन्होंने पेशवाओं को मात दे दी और इसी का हर साल स्‍थानीय दलित जश्न मनाते हैं।

दलितों के अनुसार मात्र 800 महारों ने पेशवाओं की शक्तिशाली सेना को मात्र 12 घंटे में परास्त कर दिया था।

उस समय अंग्रेजों की टुकड़ी का नेतृत्व फ्रांसिस स्टौण्टन ने किया था, जबकि पेशवाओं की ओर से ग्वालियर के सिंधिया, इंदौर के होल्कर, बड़ौदा के गायकवाड़ और नागपुर के भोसले एक साथ मिलकर लड़ रहे थे।

उस समय पेशवाओं की कुल सेना 28000 के करीब थी जिसमें 20 हजार घुड़सवार और 8 हजार पैदल सैनिक थे। लेकिन इनमें से 2800 सैनिकों ने ही अंग्रेजों के‌ खिलाफ युद्ध किया और मात खा बैठे।

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एक अनुमान के अनुसार इस युद्ध में पेशवा के 500-600 सैनिक मारे गए और बाकी भाग खड़े हुए।

कहा जाता है कि पेशवाओं के अत्याचारों से तंग आकर ही दलितों ने अंग्रेजी सेना का दामन थामा था और युद्ध में पेशवाओं के छक्के छुड़ा दिए।

इस जीत के उपलक्ष्य में ही हर साल कोरेगांव में शौर्य दिवस का जश्न मनाया जाता है। इस युद्ध को देश में सदियों तक होते रहे दलितों के दमन के प्रतिशोध के रूप में भी देखा जाता है, जो पेशवाओं ने लंबे समय तक उन पर किए।

खबरों के मुताबिक़ युद्ध के 200 साल पूरे होने पर दलितों की ओर से इस बार भव्य आयोजन किया जा रहा है, जिसमें 5 लाख से ज्यादा लोगों के जुटने की खबर है।

वैसे कार्यक्रम का मुख्य आयोजन सोमवार को रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) की ओर से किया गया था।

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यही कारण है कि आयोजन में भाजपा सांसद अमर साबले, सिद्धार्थ डेंडे और महाराष्ट्र के खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री गिरीश बापट सहित दर्जनभर नेता शामिल हुए थे।

वहीं इस भव्य आयोजन में गुजरात के नवनिर्वाचित दलित विधायक जिग्नेश मेवानी, रोहित वेमुला की मां और कई अन्य दलित नेताओं को भी शामिल होना था।

बताया जा रहा है कि भीम कोरेगांव में सोमवार को आयोजन के दौरान नजदीक के कई गावों के मराठाओं ने इसका विरोध किया, जिसके बाद हिंसा भड़क उठी।

देखते ही देखते यह विवाद कोरेगांव से निकलकर मुंबई और अहमदनगर तक पहुंच गया। जहां दलित और मराठा संगठन आमने सामने आ गए हैं। इसके चलते एक व्यक्ति की भी मौत हो गई।

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