सिनेमाजगत में भी बनी संविधान की बेमिसाल फिल्म
भारतीय संविधान को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया. इसके साथ ही इस देश को अपना गणतंत्र मिल गया. जब-जब समाज संवैधानिक मूल्यों से भटका, तब-तब सिनेमा ने लोगों को संविधान याद दिलाया. ऐसी कई फिल्में हैं जिनकी कहानी, संविधान के खिलाफ जा रहे समाज को वापस लौटने की बात करती हैं.
ख्यात फिल्मकार श्याम बेनेगल ने 2014 में राज्यसभा टीवी के लिए संविधान नाम का मिनी सीरीज टीवी शो बनाया था. इसे स्वरा भास्कर ने होस्ट किया है. इसमें संविधान के बनने की पूरी कहानी बताई गई है. जानिए ऐसी ही कुछ फिल्मों के बारे में…
आमिर खान और नसीरुद्दीन शाह स्टारर फिल्म सरफरोश क्रॉस बॉर्डर टेरेरिज्म की कहानी है. इसमें घर के अंदर ही पनप रहे देशद्रोह को दिखाया गया है. नसीर एक ऐसे गजल गायक की भूमिका में हैं, जो शत्रु देश पाकिस्तान की मदद करते हैं. फिल्म देश के प्रति वफादार होने की बात करती है.
फिल्म गांधी, महात्मा गांधी के सिद्धांत और उनके जीवन संघर्ष को दिखाती है. गांधी के जो मूल मंत्र थे सत्य और अहिंसा उसे संविधान निर्माताओं ने भी सर्वोपरि माना. इसमें गांधी की भूमिका बेन किंग्सले ने निभाई है.
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प्रकाश झा निर्देशित फिल्म अपहरण बिहार में पनपे अपराध का परदे पर लाती है. फिल्म में अपहरण की घटनाओं के खिलाफ लड़े होने वाले नायक की कहानी दिखाई गई है, जो अपने पिता से मतभेद के बावजूद सत्य के लिए लड़ता है.
फिल्म आरक्षण संविधान में उल्लेखित आरक्षण के मूल उद्देश्य की बात करती है. इसमें ये भी दिखाया गया है कि किस तरह अलग-अलग जाति वर्ग में आरक्षण को लेकर गलत धारणाएं बनी हुई हैं.
‘अर्द्ध सत्य’ संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ जा रहे समाज के खिलाफ पनपे आक्रोश से गुजर रहे एक पुलिसकर्मी की कहानी है. इसमें मुख्य भूमिका ओम पुरी ने निभाई है. फिल्म आज भी सराही जाती है.
सैयद अख्तर मिर्जा निर्देशित मोहन जोशी हाजिर हो एक ऐसे बुजुर्ग दंपती की कहानी है, जो बिल्डर्स के वादा खिलाफ और बाजारवादी मंशाओं के खिलाफ लड़ रहा है. ये फिल्म महानगरों में व्यापारी वर्ग के बीच पनप रहे लालच की तस्वीर पेश करती है.
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जॉली एलएलबी 2 में अक्षय कुमार ने मुख्य भूमिका निभाई है. ये न्याय व्यवस्था की विसंगतियों को दिखाती है. न्याय के नाम पर अन्याय ने किस तरह हमारे कोर्ट रूम में जगह बना ली है, इसकी तस्वीर पेश की गई है.
अनिल कपूर स्टारर नायक एक लोकप्रिय फिल्म है. इसमें बताया गया है कि यदि आम आदमी जन प्रतिनिधि बन जाए तो ईमानदारी के साथ समाज में बहुत कुछ बदल सकता है. फिल्म भ्रष्टाचार और गंदी राजनीति काे आइना दिखाती है.
शूल एक ऐसे पुलिस इंस्पेक्टर की कहानी है, जो ईमानदारी की कीमत चुका रहा है. फिल्म बिहार में राजनीति के अपराधीकरण के मुद्दे को उठाती है.
गुजरात दंगों की हकीकत बताती नंदिता दास की ये फिल्म काफी सराही गई. ये धर्म के आधार पर भड़की हिंसा और बर्बबता की भयावह तस्वीर पेश करती है.