साल के पहले दिन ऐसे मनाएं सफला एकादशी, साल भर होंगे सफल

आज सफला एकादशी व्रत है। साल 2019 की शुरुआत एकादशी व्रत से हो रही है। इसके अलावा जनवरी में 2 एकादशी और हैं। इस तरह पूरे महीने 3 एकादशी व्रत  रहेंगे। इसलिए साल का पहला महीना और भी खास हो गया है। सफला एकादशी पर भगवान विष्णु की सही पूजा विधि के साथ व्रत करने से पुत्र, संपत्ति और धन लाभ होता है। वहीं मृत्यु के बाद मोक्ष मिलता है। पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी यानी सफला एकादशी का व्रत अन्य एकादशी की तरह ही होता है।

सफला एकादशी

ये है व्रत की विधि और नियम

एकादशी पर सुबह जल्दी उठकर नहाएं और उसके बाद पूरे घर में सफाई करें। फिर चंदन, अक्षत, फूल, फल, गंगाजल, पंचामृत व धूप-दीप से भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा और आरती कर के भगवान को भोग लगाएं। इसके बाद भगवान के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। इसके अलावा एकादशी के दिन झूठ न बोलें। गुस्सा न करें। किसी का जूठा भोजन न करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। पति-पत्नी एक बिस्तर पर न सोएं। एकादशी के दिन मांसाहार और शराब से भी दूर रहना चाहिए।

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एकादशी की कथा
चम्पावती नगर के राजा महिष्मत के पाँच पुत्र थे। बड़ा बेटा लुम्भक हमेशा बुरे कामों में लगा रहता था। जिससे महिष्मत ने उसे अपने राज्य से बाहर निकाल दिया। इसके बाद लुम्भक वन में चला गया और चोरी करने लगा। एक दिन जब वह रात में चोरी करने के लिए नगर में आया तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया, लेकिन जब उसने खुद को राजा महिष्मत का पुत्र बताया तो सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया।

फिर वह वन में लौट आया और वृक्षों के फल खाकर जीने लगा। वह एक पुराने पीपल के नीचे रहता था। एक बार अनजाने में ही उसने पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत कर लिया। उसी समय आकाशवाणी हुई- राजकुमार लुम्भक! सफला एकादशी व्रत के प्रभाव से तुम राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे। आकाशवाणी के बाद लुम्भक का रूप दिव्य हो गया।

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तबसे उसकी उत्तम बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गयी। उसने पंद्रह सालों तक सफलतापूर्वक राज्य किया। उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। जब वह बड़ा हुआ तो लुम्भक ने राज्य अपने पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में रम गया। अंत में सफला एकादशी के व्रत के प्रभाव से उसने विष्णुलोक को प्राप्त किया।

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