गवर्नर बनते ही शशिकांत के सामने खड़ी ये बड़ी चुनौतियां, दुनिया भर की नजर सिर्फ इस बात पर
नई दिल्ली। शशिकांत दास के लिए आरबीआई गवर्नर का पद किसी अग्नीपरीक्षा से कम नहीं है। उनके सामने एक के बाद एक कई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। उनकी नियुक्ति को पूरी दुनिया एक ही नजर से देख रही है।
क्योंकि दास ऐसे समय में रिजर्व बैंक की कमान संभाल रहे हैं जब रिजर्व बैंक के सामने केन्द्र सरकार से चल रही स्वायत्ता की खींचातन के साथ-साथ सुस्त घरेलू अर्थव्यवस्था और वैश्विक स्तर पर गंभीर चुनौतिया खड़ी हैं।
उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती केन्द्रीय रिजर्व बैंक की साख बचाने की है। जिस तरह से पिछले दो गवर्नर उर्जित पटेल और रघुराम राजन ने केन्द्र सरकार से खींचतान के बीच इस्तीफा दिया, दास के सामने जल्द से जल्द इस खींचतान को खत्म करते हुए केन्द्रीय बैंक की स्वायत्ता को सुनिश्चित करना होगा।
दास के सामने दूसरी प्रमुख चुनौती यह है कि वह तीन साल के अपने पहले कार्यकाल के दौरान घरेलू और वैश्विक आर्थिक स्थिति के आकलन पर मौद्रिक नीति निर्धारित करें और केन्द्र सरकार से बेहतर सामंजस्य स्थापित करें।
बीते कुछ समय से केन्द्रीय बैंक ने देश में बैंकिंग क्षेत्र की अपनी नीतियों को कड़ा किया है। इसके चलते देश के सरकारी बैंकों के सामने कर्ज लेने और देने का काम बेहद सख्त हुआ है। इसका अर्थव्यवस्था पर प्रभाव देखा जा रहा है लेकिन बैंको के सामने गंभीर नॉन पफार्मिंग एसेट (एनपीए) की समस्या ज़्यादा गंभीर है। बैंको के एनपीए में सुधार की नीतियों को संचालित करना रिजर्व बैंक के नए गवर्नर की बड़ी चुनौती है।
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वैश्विक अर्थव्यवस्था में कारोबारी सुगमता के मापदंड बेहतर करना और घरेलू कारोबार को बढ़ाने के लिए किन नीतियों का सहारा लेना है यह भी एक मुख्य चुनौती होगी।
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केंद्र सरकार के सामने महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा रहता है। महंगाई को अहम आधार बनाते हुए केंद्रीय बैंक अपनी नीतियां निर्धारित करता है। बैंको के ब्याज दरों को बढ़ाना या घटाना देश में और वैश्विक स्तर पर महंगाई की दर को भी आधार बनाकर तय किया जाता है। वैश्विक स्तर पर ओपेक और रुस द्वारा कच्चा तेल उत्पादन में कटौती करने के ऐलान के बाद से एक बार फिर कच्चे तेल की कीमतों में इज़ाफा हो रहा है। वैश्विक स्थिति पलटने पर आरबीआई की महंगाई काबू करने की अहम चुनौती है।