राहुल आज अपने पुराने गढ़ में जनता के बीच फिर से पैर जमाने की करेंगे कोशिश

लोकसभा चुनाव में शिकस्त मिलने के बाद पहली बार अमेठी पहुंच रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी के समक्ष यहां दोबारा पैर जमाने की बड़ी चुनौती है। राहुल को शिकस्त के बावजूद लोकसभा चुनाव में मिले चार लाख से अधिक मतों को सहेजने के साथ ही जनता की नाराजगी की उस नब्ज को भी पकड़ना होगा, जिससे उन्हें यह दिन देखना पड़ा। साथ ही जनता के बीच यह मैसेज भी देना होगा कि वे अमेठी के लोगों को लेकर फिक्रमंद हैं।

राहुल

लोकसभा चुनाव में शिकस्त के बाद बुधवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी पहली बार अमेठी पहुंच रहे हैं। वैसे तो उन्होंने अपने पिता राजीव गांधी के राजनीति में पदार्पण के साथ ही कम उम्र में अमेठी आना शुरू कर दिया था। यह सिलसिला 1993 में पिता की हत्या के बाद टूटा। 1999 में मां सोनिया गांधी के अमेठी से चुनाव लड़ने के एलान के साथ उन्होंने फिर अमेठी का रुख किया।

2004 में उन्होंने खुद अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ा। उसके बाद उन्होंने 2009 और 2014 का लोकसभा चुनाव जीता। उनके सक्रिय राजनीति में उतरने के बाद पहली बार वे इस हालात में अमेठी पहुंच रहे हैं, जब वे न यहां के सांसद हैं और न ही पार्टी में कोई पदाधिकारी। ऐसा नहीं कि गांधी फैमिली के किसी सदस्य को पहली बार अमेठी में शिकस्त का मुंह देखना पड़ा है।

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1977 में संजय गांधी की अमेठी में एंट्री ही हार के साथ हुई थी लेकिन उन्होंने तीन साल के भीतर ही जोरदार वापसी की। यह बात और है कि तब उनके साथ जुझारू कांग्रेसियों की पूरी फौज थी। संजय गांधी की शिकस्त के बावजूद कांग्रेस कार्यकर्ता यहां लोगों की समस्याओं को लेकर पुरजोर संघर्ष करते रहे।

इस नजरिये से देखें तो अमेठी में राहुल की पराजय के सूत्रधार तमाम कार्यकर्ता व छुटभैये नेता भी बने। जब पूरी भाजपा और उसके फ्रंटल संगठनों के लोग गांव-गांव घूमकर केंद्र सरकार की उपलब्धियों का प्रचार कर रहे थे तब कांग्रेसी वोट मांगने तक के लिए गांवों में नहीं पहुंचे। राहुल के समक्ष ऐसे लोगों से छुटकारा पाने के साथ ही अपनी उन कमजोरियों के आत्ममंथन की जरूरत है जो जनता की नाराजगी का कारण बनीं।

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