योगी सरकार के इस फैसले से विपक्षों ने कसा तंज कहा- जीतने की नीयत से लिया गया फैसला…

बीते हफ़्ते योगी आदित्यनाथ ने एक निर्णय लिया था. प्रदेश सरकार ने एक आदेश जारी किया और उत्तर प्रदेश की 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल कर दिया. योगी सरकार के इस फैसले के खिलाफ बयानबाजी का दौर शुरू हुआ. मायावती और ओमप्रकाश राजभर जैसे नेताओं ने कहा कि ये चुनाव जीतने की नीयत से लिया गया फैसला है.

 

योगी सरकार के इस फैसले से विपक्षों ने कसा तंज कहा-  जीतने की नीयत से लिया गया फैसला...

 

 

 

बतादें की लेकिन अब इस मामले पर केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार आमने-सामने हैं. 1 जुलाई को राज्यसभा में बोलते हुए केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलोत ने कहा कि योगी सरकार का फैसला असंवैधानिक है और सही नहीं है.

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जहां थावर चंद गहलोत ने यह भी कहा कि ओबीसी जातियों को एससी सूची में शामिल करने का अधिकार संसद के पास है. बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्र के सवाल पर गहलोत ने राज्यसभा में यह भी कहा कि राज्य सरकार सही तरीके से नियमों का पालन करे.

देखा जाये तो केंद्र की आपत्ति के बावजूद और बार-बार यह याद दिलाने के बाद कि जातियों की सूची बदलने का फैसला संसद के पास है, उत्तर प्रदेश सरकार इस पर अड़ी हुई है कि वह इन सभी 17 जातियों को जाति प्रमाणपत्र देगी.

जहां योगी सरकार में मंत्री और राज्य सरकार के प्रवक्ता सिध्दार्थनाथ सिंह ने ‘आज तक’ से बातचीत में कहा है कि इन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का फैसला हाईकोर्ट का है. और ये अदालत का अंतरिम आदेश है. उन्होंने कहा है कि जब तक अदालत का आखिरी फैसला इस मसले पर नहीं आ जाता, तब तक सरकार न सिर्फ उन 17 जातियों को अनुसूचित जाति की तरह मानेगी, बल्कि उन्हें अनुसूचित जाति के सर्टिफिकेट और लाभ मिलते रहेंगे.

दरअसल उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी कहा है कि ये फैसला कोर्ट के आदेश के बाद हुआ है. सरकार इसके तकनीकी पहलुओं को देखेगी. योगी आदित्यनाथ ने पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखने वाली निषाद, बिंद, मल्लाह, केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआ, प्रजापति, राजभर, कहार, पोत्तर, मांझी, धीमर, तुरहा और गौड़िया, कुल मिलाकर 17 पिछड़ी जातियों को, अनुसूचित जाति में शामिल करने का ऐलान किया है. इन सभी 17 जातियों को यूपी की अति पिछड़ी जातियों में गिना जाता है. अतिपिछड़ी जातियां मतलब वे जातियां जिनकी सामाजिक और आर्थिक परिस्थिति पिछड़ी जातियों में भी सबसे पीछे है.

यूपी के सभी जिलों के जिलाधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे इन जातियों को अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र जारी करना शुरू करें. योगी सरकार के इस फैसले के पीछे साल 2017 का इलाहाबाद हाईकोर्ट का हवाला है, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी इन सभी 17 पिछड़ी जातियों को अतिपिछड़ा माना था.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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