सभी बंधनों से मुक्‍त कर हर मनोरथ पूर्ण करता है यह व्रत

योगिनी एकादशीआज योगिनी एकादशी व्रत है। हिन्दू धर्म के व्रत विधान का मुख्य उद्देश्य तन, मन, विचार और व्यवहार को पवित्र और शुद्ध करना है। जिससे व्यक्ति निरोगी और सुखी जीवन बिता सके। यह तभी संभव है जब व्यक्ति अपने मन के भाव और स्वभाव को संयमित और पवित्र रखे। भाव का संबंध इंद्रियों से होता है। इंद्रिय संयम खोने पर ही व्यक्ति मानसिक या शारीरिक रोगों से पीड़ा पाता है। हिंदू व्रत इंद्रिय संयम का श्रेष्ठ उपाय है। इसी क्रम में एकादशी का व्रत प्रमुख है। हर हिंदू माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में एकादशी का व्रत किया जाता है। जिनका समान महत्व होता है। धार्मिक दृ़ष्टि से एकादशी व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित है। जिसके व्रत पालन से व्यक्ति पापमुक्त होकर जनम-मरण के बंधनों से मुक्त होता है और उसके सभी मनोरथ पूरे होते हैं। किंतु शास्त्रों में हर एकादशी के व्रत पालन का अलग-अलग फल बताया गया है।

हिन्दू माह के आषाढ़ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी योगिनी एकादशी के नाम से जानी जाती है। योगिनी शब्द योग से बना है। जिसका मतलब होता है संगम, मिलाप। इस व्रत के पालन से विपरीत समय के कारण अलग हुए लोग फिर से मिल जाते हैं। साथ ही इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति निरोगी हो जाता है। खास तौर पर कुष्ठ या त्वचा रोग से पीड़ा भोग रहा व्यक्ति रोग मुक्त होता है। इस तरह योगिनी एकादशी व्रत का फल स्वास्थ्य और संबंधों को अनुकूल बनाने वाला है।

इस व्रत को रखकर भगवान नारायण की मूर्त्ति को स्नान कराकर भोग लगाते हुए पुष्प, धूप, दीप से आरती करनी चाहिये। इस एकादशी को करने से पीपल के वृक्ष को काटने से उत्पन्न हुए पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में मनुष्य स्वर्गलोक को पाता है।

योगिनी एकादशी व्रत कथा

एक समय की बात है जब अल्कापुरी में कुबेर के यहाँ हेम नाम का माली रहता था। वह भगवान शंकर की पूजा के लिए रोज मानसरोवर से फूल लाया करता था। एक दिन की बात है कि वह कामोन्मत्त होकर पत्नी के साथ स्वच्छंद विहार करने के कारण फूल लाने में देरी कर बैठा और कुबेर के यहां देरी से पहुंचा। कुबेर ने क्रोधित होकर उसे कोढ़ी बन जाने का श्राप दे दिया।

कोढ़ी के रुप में जब वह मार्कण्डेय ऋषि के पास पहुंचा तब उन्होणे योगिनी एकादशी का व्रत रखने का नियम बताया। व्रत के प्रभाव से उसका कोढ़ समाप्त हो गया और दिव्य शरीर प्राप्त कर के अंत में स्वर्गलोक गया।

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